Wednesday, April 2, 2014

शायद ! तुम


तुम उस झाड़ के पीछे
क्यूँ लुके हुए बैठे हो ?
मुझे नज़र आ रहा है
ज़रा-ज़रा सा कुछ 
शायद !
तुम्हारे सुनहरे रंग कि शेरवानी
और उसपे लिया हुआ
महरूनी साफा होगा...
कब तक छिपोगे आखिर ?
वो देखो !
हवा चली आ रही है
उस पर्वत को पार किया
फिर शिला से टकरायी है
उस मिट्टी के टीले से
कुछ धूल को समेट लिया
अरे !
अभी बीच में खायी भी है
आह !
आनन्-फानन में
लो जा गिरी गहराई में
कोई बात नहीं थोड़ा रुकती हूँ
यकीन है 
इस बार जब ये लहर उठेगी
तो ज़मीन पर बिछा देगी झाड़
जो बीच में खड़ी हैं
और
मैं तुम्हे जीभर देख लूंगी
हाँ! शायद !
ये भी हो सकता है
मेरा स्नेह तुम्हे बाँध ले
और तुम सिर्फ
मुझ तक ठहर जाओ !! 

रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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