Monday, April 28, 2014

" लो ! हमको....तुमसे इकरार है "


वक़्त को कहो मद्धम करले अपनी गति
मेरे सामने हैं एक लम्बे इंतज़ार के बाद वो
दिल के तुफानो ने सब्र पर मिट्टी झोंक दिया है
या खुदा !
मेरी नज़रो को ताब दे की मैं उसे जी भर के देख सकूँ
खामोशियो को काट दूँ हौसले की धार से
ताकि कह सकूँ तुम्हे धड़कनो की सुलगती दास्तां
बैठने दो इन श्याह अंधेरो में तुम्हारे बेहद पास
झांकने दो तुम्हारी आँखों के दरिया में
उर्फ़ ! के खौफ ये भी है की
डूब न जाऊं कहीं इनकी गहराई में मैं
पढ़ने दो तुम्हारे सुर्ख लबो के
हिलते-डुलते किन्तु मौन भाषा को
निकालने दो नई परिभाषा अदृश्य शब्दों से
हटाओ ये दीवार ह्या की
सुनो मेरे मन की आवाज़ की मैं यहाँ हूँ
तुम्हारे रुखसार की ये चमक
मेरे रूह को तराशती जा रही है
कहीं मैं तुम्हारा दीवाना न हो जाऊं
तुम्हारे हाथो की नर्माईयां
फूलो की कोमल पंखुड़ियों जैसी है
समझ नहीं आता इन्हे सम्भालूँ कैसे?
साँसों की गर्माइयां तो जैसे आग हो
और मैं मोम सा पिघलता जा रहा हूँ
जितना तुम्हारे जुल्फों की लट्टो को सुलझता हूँ
इनमे उतना ही उलझता जाता हूँ
छूता हूँ तो इक बेकाबू सी लहर दौड़ पड़ती है मुझमे
जैसे किसी ने हारमोनियम पे ऊँगली फेरी हो
और वो बिना रुके बजता जा रहा हो
ऐसा मालूम पड़ता है मरते हुए 'श्लोक' को तुमने
अनगिनत साँसों से भर दिया हो
उम्र की सीमा को कई गुना आगे बढ़ा दिया हो
जिंदगी की ख्वाइश सर चढ़ा दिया हो
अब डर लगता है तो सिर्फ मरने से......

हाँ ! अब मोहोब्बत होने लगी है
मुझे आहिस्ता-आहिस्ता मुझसे....
जबसे मैंने पाया है तुम्हे

लो ! हमको....... तुमसे इकरार है
की
तुम मेरी जिंदगी हो गयी हो !! 


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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