Tuesday, April 29, 2014

"ये आदत नही बदलती"

वो दिन गए जब हमे हासिल थे
तुमसे टेड़े-मेढे सवालात करने के हक़
और हमेशा उनके जवाबो की नोक
अपनी तरफ घुमा लेने की आदत
जब तुम तारीफ में कुछ कहो न तो
खफा हो भवे सिकोड़ लेने की अदा

मगर
अब कुछ नहीं है सिवाय वीराने के
बस हिस्से में आये हैं
उस वक़्त के चंद अवशेष
जिसे निकाल कर बैठ जाती हूँ
कभी-कभी मैं
छिपके-छिपाके अपने आप से
और दिखाती किसी को भी नहीं
लेकिन नजाने क्यूँ आज भी
वो आदत नही छोड़ पायी मैं

सुना है !
बुरी आदते जल्दी नहीं सुधरती

शायद !
तब्दील हो गयी हैं अब ये दीवानगी में
और ये पागलपन ही तो है
खामखा तुम्हारे लव्ज़ों में
खुद को तलाशने निकल पड़ती हूँ
जबकि जानती हूँ
मैं कहीं नहीं हूँ अब तुम्हारे पास
न अवशेषों के तौर पर
न ही तुम्हारी कविता में कहीं लव्ज़ों के तौर पर !!!

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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