Thursday, April 17, 2014

!! पाँव यूँही जलता रहा !!

तेरी ज़ुस्तज़ू में डूबता रहा निकलता रहा
मैं थका भी था सफर में मगर चलता रहा

इक तलाश में अंगारो से गुजरना पड़ा
मैं कहीं खोया था ये पाँव यूँही जलता रहा

यूँ तो मुझे खुद से कोई ख़ास मोहोब्बत न थी
मगर वो तू था जिसके लिए मैं संभालता रहा

जब खामोश मिली सारी सदायें आर-पार तक
तब भी तू मेरी साँसों में इक लय से चलता रहा

तूने नजाने कब धड़कनो में जगह बना ली
मैं तमाम रात तेरी सोच में करवटे बदलता रहा

बना कर छोड़ आया था इक अक्स किनारो पर
तबसे हर लहर बस इक ही सवाल करता रहा

जब भी दिए की रोशनी बुझाई है अँधेरे में
तू नींदों से उतर ख्वाबो की जगह मलता रहा

सुबह जब तू दूर तक नज़र नही आया मुझे
मैं बेसब्र होकर आँख अपनी मसलता रहा

ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक

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