Thursday, April 17, 2014

!! हम जीत हैं जीतने का मश्वरा देते हैं !!

कैसे मैं इन गमो से नाता तोडू ?
मुझे हर वक़्त ये जीने का मज़ा देते हैं

पत्थर जितने मेरे सीने पे आ लगते है
मोहोब्बत की धुन को सर पर चढ़ा देते हैं

ठोकर जितनी मैं इन राहो से खाती हूँ
जिंदगी क्या चीज़ है मुझको बता देते हैं

अँधेरे जितनी बेरुखी से मुझको देखते हैं
हम मशाल उतनी ही तेजी से जला लेते हैं

ख्वाब के टुकड़े जब भी आँखों में चुभते हैं
ये आँसू दर्द को सहने का हौसला देते हैं

नसीब की जब भी तस्वीर बिगड़ जाती हैं
हम इसके नूर को हसीं रंगो से भर देते हैं

हम कायर नहीं हैं हारना फितरत में नही मेरे
हम जीत हैं और जीतने का मश्वरा देते हैं


ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'

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