बड़ी गौर से सुनते है वो अक्सर मेरी बातें
जिन्हे हर बात पर ऊँगली उठाना अच्छा लगता है
जिन्हे हर बात पर ऊँगली उठाना अच्छा लगता है
खबर है की लहरे आकर गिरा देंगी आशियाँ मेरा
साहिल पर फिर भी घर बनाना अच्छा लगता है
साहिल पर फिर भी घर बनाना अच्छा लगता है
जब हम निकल आएं है वक़्त से बहुत आगे
फिर आज वो बिछड़ा ज़माना अच्छा लगता है
फिर आज वो बिछड़ा ज़माना अच्छा लगता है
कमरे में रखा है खाली गमला बिन फूलो का
तेरी यादो से पूरा घर महकाना अच्छा लगता है
तेरी यादो से पूरा घर महकाना अच्छा लगता है
वो हकीकत में ठहर जाएँ हम ये सोचे भी कैसे
उन्हें सपना बनके नींदों में आना अच्छा लगता है
उन्हें सपना बनके नींदों में आना अच्छा लगता है
अपनी ग़ज़ल के अल्फाज़ो को दोहराने से भी ज्यादा
'श्लोक' को तेरा नाम गुनगुनाना अच्छा लगता हैं
'श्लोक' को तेरा नाम गुनगुनाना अच्छा लगता हैं
___________परी ऍम 'श्लोक'
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteक्या खूब .....गजल को बार-बार पढ़ता ही रह गया.....आभार!
ReplyDeleteसुंदर ग़ज़ल आदरणिया परी जी, साभार!
ReplyDeleteधरती की गोद
अतिसुंदर गजल आप बधाई की पात्र है
ReplyDeleteअपनी ग़ज़ल के अल्फाज़ो को दोहराने से भी ज्यादा 'श्लोक' को तेरा नाम गुनगुनाना अच्छा लगता हैं