सन्नाटो की तेज आवाज़े सुन
अपने हाथो में हाथ थाम कर
फिर आहिस्ता से धड़कन सुन
आ जा चाँद रात में छत पर
संग मेरे इंद्रधनुषी सपने बुन
अनुभूतियों के समंदर तट से
तू भी बेशकीमती मोती चुन
कल का क्या हो पता नहीं
समेट ले हरपल हसने के गुन
मुट्ठी में बंद करले ये खुशियाँ
गम को अपनी उंगली पे गिन
तुझसे प्रीत लगा के गूंजी
हवाओ में बांसुरियों के धुन
हर मौसम हुआ कितना सुहाना
भाये हैं अब बारिश की बुंद
जीवन कितना सरल हो गया
खिलकर जैसे कमल हो गया
तुझको पाकर स्वर्ग मिला
आशाओ को जैसे अर्द्ध मिला
तेरे संग आसानी से कट गए
मुश्किल के जो आये दिन
__________परी ऍम 'श्लोक'
sundar abhivyakti aadarniyaa pari ji!
ReplyDeleteधरती की गोद
बहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteबहुत सुनदर
ReplyDeleteसन्नाटों की खामोसी में
सांय सांय की मदहोसी में
दिल की धड्कन मेरे सुन लो
सांसों की बेहोसी में
अज़ीज़ जौनपुरी
अब इतना कहा है तो उन्हें सुनना ही पड़ेगा :)
ReplyDeleteसादर