छिपा कर दर्द अपना अक्सर मुस्कुराती रही
चेहेरे पर पड़ी हुई "माँ" की झुर्रियां बताती हैं
चेहेरे पर पड़ी हुई "माँ" की झुर्रियां बताती हैं
वो रात भर कहरती है मैं चादर तान के सोती हूँ
मुझे गर छींक भी आये तो "माँ" सिहर जाती है
मुझे गर छींक भी आये तो "माँ" सिहर जाती है
मेरी माँ ने इक्का-दुक्का भी नहीं पढ़ाई कि
मगर आँखे किताबो सा जाने कैसे पढ़ जाती है
मगर आँखे किताबो सा जाने कैसे पढ़ जाती है
धूप जब भी मुझे जलाने कि ज़ुर्रत करता है
'माँ' दौड़ कर मुझको आँचल में छिपाती है
'माँ' दौड़ कर मुझको आँचल में छिपाती है
"माँ" मेरी यकीकन खुदा का कोई फरिश्ता हैं
मैं मुँह भी न खोलूँ वो मंशा कि जान जाती है
मैं मुँह भी न खोलूँ वो मंशा कि जान जाती है
जैसे जुड़ी हुई है मेरी आत्मा... मेरी "माँ" से
मीलो दूर से भी उफ्फ करूँ तो "माँ" को आवाज़ आती है
मीलो दूर से भी उफ्फ करूँ तो "माँ" को आवाज़ आती है
ज़माना बेतुकी सी बात को मसला बनाती है
"माँ" कितनी भी गलती करूँ पर्दा डाल आती है
"माँ" कितनी भी गलती करूँ पर्दा डाल आती है
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©
परी ऍम 'श्लोक'
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteता उम्र यूँ हीं छटपटाती रही
दर्द सीने में ले मुस्कुराती रही
बांध दर्द की गांठ पालू में अपने
ता उम्र यूँ ही गुनगुनाती रही
khoobsoorat abhivyakti...
ReplyDeleteplz visit and join my blog
anandkriti007.blogspot.com
Beautiful ! :) It reminded me of Washington Irving's quote - “A mother is the truest friend we have, when trials heavy and sudden fall upon us; when adversity takes the place of prosperity; when friends desert us; when trouble thickens around us, still will she cling to us, and endeavor by her kind precepts and counsels to dissipate the clouds of darkness, and cause peace to return to our hearts.”
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पोस्ट
ReplyDeleteसादर
माँ के रिश्ते का बहुत सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteरी माँ ने इक्का-दुक्का भी नहीं पढ़ाई कि
ReplyDeleteमगर आँखे किताबो सा जाने कैसे पढ़ जाती है
धूप जब भी मुझे जलाने कि ज़ुर्रत करता है
'माँ' दौड़ कर मुझको आँचल में छिपाती है
"माँ" मेरी यकीकन खुदा का कोई फरिश्ता हैं
मैं मुँह भी न खोलूँ वो मंशा कि जान जाती है
माँ बिना पढ़े ही सब कुछ जान जाती है ! चेहरे से लेकर दिल तक को पढ़ लेती है माँ ! बेहतरीन अलफ़ाज़ परी जी
बहुत ही सुन्दर...अद्भुत....माँ के लिए तो सर्वत्र न्योछावर..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीया माँ के लिए ... माँ पर लिखी हर रचना मुझे बहुत अछि लगती है क्यूंकि माँ के जैसा इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं ..
ReplyDeleteकल 26/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
धूप जब भी मुझे जलाने कि ज़ुर्रत करता है
ReplyDelete'माँ' दौड़ कर मुझको आँचल में छिपाती है
"माँ" मेरी यकीकन खुदा का कोई फरिश्ता हैं
मैं मुँह भी न खोलूँ वो मंशा कि जान जाती है
जैसे जुड़ी हुई है मेरी आत्मा... मेरी "माँ" से
मीलो दूर से भी उफ्फ करूँ तो "माँ" को आवाज़ आती है
ज़माना बेतुकी सी बात को मसला बनाती है
"माँ" कितनी भी गलती करूँ पर्दा डाल आती है
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
नवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शम्भू -निशम्भु बध भाग २
छिपा कर दर्द अपना अक्सर मुस्कुराती रही
ReplyDeleteचेहेरे पर पड़ी हुई "माँ" की झुर्रियां बताती हैं.... बहुत सुंदर पंक्तियाँ आदरणिया परी जी!
धरती की गोद
सच में माँ ऐसी ही होती है !
ReplyDeleteज़माना बेतुकी सी बात को मसला बनाती है
ReplyDelete"माँ" कितनी भी गलती करूँ पर्दा डाल आती है
वाह बहुत सुंदर।
बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeletewah behatreen
ReplyDeleteमेरी माँ ने इक्का-दुक्का भी नहीं पढ़ाई कि
ReplyDeleteमगर आँखे किताबो सा जाने कैसे पढ़ जाती है
...वाह..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteBeautiful.....
ReplyDeletehttp://swayheart.blogspot.in/2014/09/blog-post.html