"तरस के रह गयी"
लाख बरसी आँखे
धोती रही इससे
इच्छाओ का रक्त
जाने कितने ही रूमालों को
टपकता दरिया बना दिया
लेकिन मन पर
छायी हुई पीड़ाओं की
काली स्याह घटायें
अब तक नहीं छटी
हु-बा-हु है आज भी
और
भोर के सूरज की
इक नन्ही रोशनी भरी
मुस्कान को
मैं बस
तरस के रह गयी !!
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परी ऍम 'श्लोक'
बेहतरीन
ReplyDeleteयथार्थ or sundar
ReplyDeleteलाज़वाब बहुत ही सुन्दर भाव उकेरे हैं आप नें
ReplyDeletebahut Sundar!
ReplyDeletekitne hi dardon mein mit kyon na gayi hon raahein
kahin anturman mein ek talash abhi shesh hai
vidhvanson ke dhooye to ghumadte hi rahte hain
ek sundar si aplak smruti ki aas abhi shesh hai!