मेरे विचार इन पन्नो पर
शब्दों में जड़ कर
बारूद की तरह
रह-रह कर दबा आती हूँ
ताकि जब भी कोई
इस जमीन पर कदम रखे
इक-इक करके विस्फोट हो
ठीक वैसे जैसे
कई जहरीले हकीकतों को लिखते हुए
मेरी मनोदशा होती है
जैसे मेरे हाथ मेरी रूह कंपकपा जाती है
भस्म हो जाए उस आग में
वो खूंखार जानवर
जिसने मानवता को निगल लिया
और मानव की खाल को
खुद ओढ़े हुए बैठा है
मैं इसके जागने से पहले ही
इसे मार देना चाहती हूँ
चाहती हूँ की
मेरी कलम की नोक से
इतनी दहशत फ़ैल जाए कि
भेड़ियो कि असंवेदनशील ये नस्ले
इंसान के शरीर के भीतर ही
आत्मदाह करले
ऐसी विलक्षण बुराइयो का
अंत भयावह हो जाए
और जिनमे अभी शेष है मानवता
वो इस विस्फोट से
जला ले क्रांति कि मशाल
फैला दे इतना उजाला कि
हर जर्रे में भी देखने कि ताकत आ जाए
हर बुराई से मुकाबले कि हिम्मत आ जाए
नेक बदलाव चाहती हूँ
और नेकी में दम तोड़ते साहस को
जिन्दा करना चाहती हूँ !!
_________परी ऍम 'श्लोक'
शब्दों में जड़ कर
बारूद की तरह
रह-रह कर दबा आती हूँ
ताकि जब भी कोई
इस जमीन पर कदम रखे
इक-इक करके विस्फोट हो
ठीक वैसे जैसे
कई जहरीले हकीकतों को लिखते हुए
मेरी मनोदशा होती है
जैसे मेरे हाथ मेरी रूह कंपकपा जाती है
भस्म हो जाए उस आग में
वो खूंखार जानवर
जिसने मानवता को निगल लिया
और मानव की खाल को
खुद ओढ़े हुए बैठा है
मैं इसके जागने से पहले ही
इसे मार देना चाहती हूँ
चाहती हूँ की
मेरी कलम की नोक से
इतनी दहशत फ़ैल जाए कि
भेड़ियो कि असंवेदनशील ये नस्ले
इंसान के शरीर के भीतर ही
आत्मदाह करले
ऐसी विलक्षण बुराइयो का
अंत भयावह हो जाए
और जिनमे अभी शेष है मानवता
वो इस विस्फोट से
जला ले क्रांति कि मशाल
फैला दे इतना उजाला कि
हर जर्रे में भी देखने कि ताकत आ जाए
हर बुराई से मुकाबले कि हिम्मत आ जाए
नेक बदलाव चाहती हूँ
और नेकी में दम तोड़ते साहस को
जिन्दा करना चाहती हूँ !!
_________परी ऍम 'श्लोक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसफे पे हासिया तो रहने दे
मुझे भी अपनी बात कहने दे
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत खूब ...
ReplyDeletebahut badhiya rachana!
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