साफा न हो अच्छे रिश्तो का
कमीज खुशियो की चिथड़ी हो
जब मेहनत करके भी
पूरा न कर पाये घर खर्च
संगिनी बिस्तर पर बीमार पड़ी हो
कर्ज में डूबा हो गर्दन तक
बच्ची भूख से तड़प रही हो
ऐसे में इंसान
कविता नहीं लिखता
बल्कि उनकेरता है
स्वयं की संतुष्टि के लिए
पृष्ठभूमि पर अपनी ही आत्म कथा
घुमावदार शब्दों में
ताकि
अकेले ही जो वो
तमाम तकलीफो से जूझ रहा है
निकाल सके उसकी भड़ास
और
आगे फिर से सामना
करने के लिए तैयार हो सके
नए दिन के साथ आने वाली
नयी मुश्किलो के लिए !!
__________परी ऍम 'श्लोक'
कमीज खुशियो की चिथड़ी हो
जब मेहनत करके भी
पूरा न कर पाये घर खर्च
संगिनी बिस्तर पर बीमार पड़ी हो
कर्ज में डूबा हो गर्दन तक
बच्ची भूख से तड़प रही हो
ऐसे में इंसान
कविता नहीं लिखता
बल्कि उनकेरता है
स्वयं की संतुष्टि के लिए
पृष्ठभूमि पर अपनी ही आत्म कथा
घुमावदार शब्दों में
ताकि
अकेले ही जो वो
तमाम तकलीफो से जूझ रहा है
निकाल सके उसकी भड़ास
और
आगे फिर से सामना
करने के लिए तैयार हो सके
नए दिन के साथ आने वाली
नयी मुश्किलो के लिए !!
__________परी ऍम 'श्लोक'
sundar
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteऐसे में इंसान
ReplyDeleteकविता नहीं लिखता
बल्कि उनकेरता है
स्वयं की संतुष्टि के लिए
पृष्ठभूमि पर अपनी ही आत्म कथा
घुमावदार शब्दों में
sahi kahaa aapne
bahoot hu umda aur bhaav purn
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteसुंदर कविता दिल की गहराईयों मे उतरने वाली, साभार! आदरणिया परी जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
waah khoob khoobsurat badhai
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