कागज़ कि कश्तियाँ आँगन में पानी
लौटा दे न वक़्त वो बेपरवाह जिंदगानी
चिड़ियों कि चहक महक वादियों कि
लौटा दे सकून का वही दाना-पानी
वो बस्ते का बोझ बेहतर था इससे
तजुर्बों ने चुराया हर किस्सा-कहानी
लाल जोड़े का भी अलग रहा तमाशा
छीन ले जाती है आज़ादी कि निशानी
बड़े होकर मिला क्या सपनो का चूरा
मन में छिपा ली थी जीतनी भी ग्लानि
निकाल बाहर कर समझ के भंवर से
मुझपे करदे नादानी कि वही बूँदा-बांदी
टूट जाए खिलौने तो 'बाबा; दूसरा ला दे
'माँ' सीने से लगा कहे न रो बिटिया रानी
मुमकिन है तो दे जा वो मौसम रूमानी
'श्लोक' पर कर जा तू इतनी सी मेहरबानी
______© परी ऍम 'श्लोक'
बहुत मासूम सी तमन्ना जिसे सब दोबारा से जीना चाहते हैं ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteWaaah sundar likha hai aapne ......badhai .
ReplyDeletePari mai apka padosi basti jile me babhnan ke pas ka hoon .
Fb pr upasthit hoo
naveentripathi35@gmail.com
वो बस्ते का बोझ बेहतर था इससे
ReplyDeleteतजुर्बों ने चुराया हर किस्सा-कहानी
लाल जोड़े का भी अलग रहा तमाशा
छीन ले जाती है आज़ादी कि निशानी
बड़े होकर मिला क्या सपनो का चूरा
मन में छिपा ली थी जीतनी भी ग्लानि
मासूमियत से भरी कल्पना
सुन्दर भावाभिव्यक्त करती गुलाब की खुशबू समेटे
ReplyDeleteकाश.....बचपन लौटा सकते.... बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना. काश वो बचपन फिर लौट आये
ReplyDeleteवक्त को शब्दों में बाँधकर लौटाना बहुत अच्छा लगा। स्वयं शून्य
ReplyDelete