Tuesday, September 9, 2014

"तब जिंदगी एकबार फिर से रुक जाती"

मन की दीवारो पर
उतर आती सीलन
नाकामियों की पपड़ियाँ
फिर बिगाड़ देती
कोशिशों का चेहरा
थोड़े-थोड़े लम्हों से
हाथ पसारे माँगती
खुशियों की वजह
पर आसान कहाँ था ?
जो चाहूँ वही मिलना मुझे
हँसना चाहती जब भी
तेरी याद का झोंका
जलता तिनका लाकर कोंच जाता
तर-बतर हो जाती आँखे
धकेल देती उसी दुर्दशा में
जहाँ से निकलने को
पार किया था मैंने
उमड़ा हुआ सैलाब
बेहिसाब दर्द का...

होता फिर से
इस तड़प की भभक से
भावनाओ के सिलैंडर में विस्फोट
और
खुद के साथ किये हुए
समझौते की पोलपट्टी खुल जाती
काया फिर से पलट जाती
वो राख फिर उठ जाती 
साँसे चलती मगर
जिंदगी एकबार फिर से रुक जाती!!!


 ________परी ऍम 'श्लोक'
 

5 comments:

  1. क्या गज़ब की कल्पना है

    तेरी याद का झोंका
    जलता तिनका लाकर कोंच जाता
    तर-बतर हो जाती आँखे
    धकेल देती उसी दुर्दशा में
    जहाँ से निकलने को
    पार किया था मैंने
    उमड़ा हुआ सैलाब
    बेहिसाब दर्द का...
    बहुत खूब

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  2. बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !

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  3. स्मृतियाँ होती ही हैं कुछ इस तरह. सुन्दर रचना.

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

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