मधुमास भी अब पतझड़ लगता है
मीठी आवाजो से डर लगता है
तन्हाई ने अपना तलबगार बना लिया
अब जंगल ये सारा शहर लगता है
जब से सूखी है आँगन कि बेल
घर मुझको पुराना खण्डर लगता है
चढ़ी सर पर और अब तक न उतरी
मुझको तो ये तेरा असर लगता हैं
किससे कहती कि वो लहर थाम ले
हर इंसान दर्द का समंदर लगता है
प्यार कि भाषा कोई समझता नहीं
ये ज़माना मुझे तो अनपढ़ लगता हैं
वो आँखो कि बात समझता कैसे ?
हाल-ए- हलचल से मेरी बेखबर लगता है
कैद हूँ तिलिस्मी किसी पिंजरे में
कटा हुआ दिल परिंदे का पर लगता हैं
जो कह नहीं पाता साफ़-साफ़ कोई बात
उसकी बातो में ही अगर-मगर लगता है
इंसान बड़ी ही पेचीदा चीज़ है यारो
किसी को समझने में पूरा जनम लगता है
मंज़िल खो जाती है जब किसी मोड़ पर
फिर मुश्किल बड़ा ये सफर लगता हैं
बिन कहे ही सब ऐसे समझ जाना
'श्लोक' तेरा गज़ब ये हुनर लगता है
_________ ©परी ऍम 'श्लोक'
मीठी आवाजो से डर लगता है
तन्हाई ने अपना तलबगार बना लिया
अब जंगल ये सारा शहर लगता है
जब से सूखी है आँगन कि बेल
घर मुझको पुराना खण्डर लगता है
चढ़ी सर पर और अब तक न उतरी
मुझको तो ये तेरा असर लगता हैं
किससे कहती कि वो लहर थाम ले
हर इंसान दर्द का समंदर लगता है
प्यार कि भाषा कोई समझता नहीं
ये ज़माना मुझे तो अनपढ़ लगता हैं
वो आँखो कि बात समझता कैसे ?
हाल-ए- हलचल से मेरी बेखबर लगता है
कैद हूँ तिलिस्मी किसी पिंजरे में
कटा हुआ दिल परिंदे का पर लगता हैं
जो कह नहीं पाता साफ़-साफ़ कोई बात
उसकी बातो में ही अगर-मगर लगता है
इंसान बड़ी ही पेचीदा चीज़ है यारो
किसी को समझने में पूरा जनम लगता है
मंज़िल खो जाती है जब किसी मोड़ पर
फिर मुश्किल बड़ा ये सफर लगता हैं
बिन कहे ही सब ऐसे समझ जाना
'श्लोक' तेरा गज़ब ये हुनर लगता है
_________ ©परी ऍम 'श्लोक'
बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteआपने हर एक शब्द को आपने मोतियों से पिरोया है।
बहुत बढ़िया परी जी
ReplyDeleteसादर
इंसान बड़ी ही पेचीदा चीज़ है यारो
ReplyDeleteकिसी को समझने में पूरा जनम लगता है
क्या बात है ! गज़ब के अशआर और दमदार भी
कल 19/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
jee jawaab nahi, bahut sundar!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकिससे कहती कि वो लहर थाम ले
ReplyDeleteहर इंसान दर्द का समंदर लगता है ! बहुत खूब परी जी !
बहुत ही सुन्दर रचना बहुत अछा लिखा है
ReplyDeleteNICE AS USUAL FROM YOUR PAE..MAY GOD BLESS YOU
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteप्यार कि भाषा कोई समझता नहीं
ReplyDeleteये ज़माना मुझे तो अनपढ़ लगता हैं...सुंदर अभिव्यक्ति आदरणिया परी जी!
धरती की गोद
Nice lines
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteप्यार कि भाषा कोई समझता नहीं
ReplyDeleteये ज़माना मुझे तो अनपढ़ लगता हैं
बहुत खुबसुरत रचना
पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
इंसान बड़ी ही पेचीदा चीज़ है यारो
ReplyDeleteकिसी को समझने में पूरा जनम लगता है
क्या बात है !
मंज़िल खो जाती है जब किसी मोड़ पर
ReplyDeleteफिर मुश्किल बड़ा ये सफर लगता हैं ..
सच लिखा है ... खो जाती हैं जब मंजिल तो सफ़र बेमानी लगता है ...
अत्यंत सुन्दर लिखा !!!!
ReplyDeleteकितना सच है यह कि
ReplyDeleteतन्हाई ने अपना तलबगार बना लिया
अब जंगल ये सारा शहर लगता है
जब से सूखी है आँगन कि बेल
घर मुझको पुराना खण्डर लगता है
चढ़ी सर पर और अब तक न उतरी
मुझको तो ये तेरा असर लगता हैं