बहुत सुन्दर प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-11-2014) को "अपनी मूर्खता पर भी होता है फख्र" (चर्चा मंच-1786) पर भी होगी। -- चर्चा मंच के सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सही कहा है...तन अवश्य घायल हो जाता है पर मन पर चोट नहीं लगती....
ReplyDeleteहा हा हा हा.... पागल तब होइये जब कोई मिल जाये खास....आपकी देखरेख करने वाला.... :)
ReplyDeletebAHUT UMDA
ReplyDeleteदुनिया खुद एक पागल खाना है। यहां लोगों के हाथ में सिर्फ पथ्थर ही तो हैं।
ReplyDeleteजिसके लिये पागल हुए वोह जान पाये कि पत्थर खा रहे है..... तब तो वाजिब है ख्याल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (03-11-2014) को "अपनी मूर्खता पर भी होता है फख्र" (चर्चा मंच-1786) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही अच्छा
ReplyDeleteपरी जी ,पत्थर खाने के लिए नहीं है नारी देह ,न संवेदनशील मन पागल होने के लिए. हाथ में पत्थर उठा लेने वाला पागलपन हो तो अच्छा !
ReplyDeleteParri ji your pen always offers some thing special.
ReplyDeleteवाह ... कितनी गहरी बात कह दी ...
ReplyDeleteशायद इसे ही कहते है गागर मे सागर भरना ।
ReplyDeleteबहुत गहरी बात,,
ReplyDeleteसुन्दर...
क्या बात कही है !! आप तो लोगों को पागल होने के लिए प्रेरित कर रहे हो परी जी , हहहाआआआआ ! just kidding
ReplyDeleteबिलकुल सही अवलोकन एवं विवेचन !
ReplyDeletehmmm pathhar lagne se tan ghayal ho jata h sirf kuch hi samay k liepr ungli uthne se jindagi ghayal ho jati h
ReplyDeletehmmm sach h patthar lagne se tan kuch der k liye ghayal hota h aur ungli uthne se jindagi ghayal ho jati h
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