रस्म
है... रिवाज़ है ..
पहरा
कहूँ ?
नहीं
ये तो दीवार है
जो
तेरे मेरे बीच खड़ी है
तुम
नाघ नहीं सकते
मैं
तोड़ नहीं सकती
समाज
तुम समझते हो
रिश्तो
को मैं ...
चलो!
मत
छोड़ना ये डोर
थामे
रहना यूँ ही
मैं
इंतज़ार कर लूँगी
एक
जनम....
एक
उम्र तन्हा और सही..
तुम
दिल से नहीं मिटा पाओगे
मैं
रूह में जलाये रखूँगी
मिलूँगी
तुम्हे....
ठीक
उसी जगह
जहाँ
तुमने छोड़ा हैं मेरा हाथ
वो
ज़मीन जो सींच दी है मैंने
अपने
आँसुओ से
खिलेंगे
वहाँ बगीचे
में
रंग-बिरंगे फूल...
महकती फिज़ाओ में
मुस्कुराती हवाओ में
मुस्कुराती हवाओ में
लहराती हुई
आऊँगी तुमसे मिलने
एक
लम्बे अंतराल
एक
लम्बे फ़ासले के बाद
अहसासों
के
उसी
निशान पर चलके
तुम तक
जब
ना होगी
कोई
मज़हबी
सरहद
हमारे बीच
और तुममे आ जाएगा
मुझे
स्वीकार कर पाने का साहस
हम......
फिर मिलेंगे !!
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©
परी ऍम. 'श्लोक'
और तुममे आ जाएगा
ReplyDeleteमुझे स्वीकार कर पाने का साहस
हम...... फिर मिलेंगे !!.....bahut badhiya
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबहुतों के दिलों की बात कह डाली आपने अपनी कविता में और अब यह व्यक्तिगत ना रह कर सार्वभौमिक हो गयी है ! जाने कितने लोगों को इंतज़ार है मिलन के उस एक पल का जब एक तमाम उम्र की तन्हाई वे उस पल पर वार दें ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही भावुक सा वादा.....!!!
ReplyDeleteUtkrusht aur samvedansheel prastuti..
ReplyDeletekeep your good work on. Baba Bless.
कल 27/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
shabd me simayein!
ReplyDeleteभावों की सुन्दर शब्दों से की गई खूबशूरत पच्चीकारी
ReplyDeleteवक्त की दहलीज़ पर दे गया दस्तक कोई
आवाज कोई तन्हाईओं में मुझको सताती है
अज़ीज़ जौनपुरी
मैं इंतज़ार कर लूँगी
ReplyDeleteएक जनम....
एक उम्र तन्हा और सही...Beautiful words Pari :)
ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteचलो!
ReplyDeleteमत छोड़ना ये डोर
थामे रहना यूँ ही
मैं इंतज़ार कर लूँगी
एक जनम....
एक उम्र तन्हा और सही..
आपके शब्दों में भावनाएं अपने पूरे यौवन पर होती हैं ! बहुत बहुत बधाई परी जी