Tuesday, November 25, 2014

हम...... फिर मिलेंगे


रस्म है... रिवाज़ है ..
पहरा कहूँ ?
नहीं ये तो दीवार है
जो तेरे मेरे बीच खड़ी है
तुम नाघ नहीं सकते
मैं तोड़ नहीं सकती
समाज तुम समझते हो
रिश्तो को मैं ...

चलो!
मत छोड़ना ये डोर
थामे रहना यूँ ही
मैं इंतज़ार कर लूँगी
एक जनम....
एक उम्र तन्हा और सही..
 
तुम दिल से नहीं मिटा पाओगे
मैं रूह में जलाये रखूँगी
मिलूँगी तुम्हे....
ठीक उसी जगह
जहाँ तुमने छोड़ा हैं मेरा हाथ
वो ज़मीन जो सींच दी है मैंने
अपने आँसुओ से
खिलेंगे वहाँ बगीचे में
रंग-बिरंगे फूल...
महकती फिज़ाओ में
मुस्कुराती हवाओ में 
लहराती हुई
आऊँगी तुमसे मिलने
एक लम्बे अंतराल
एक लम्बे फ़ासले के बाद
अहसासों के
उसी निशान पर चलके
तुम तक
जब ना होगी
कोई मज़हबी
सरहद हमारे बीच
और तुममे आ जाएगा
मुझे स्वीकार कर पाने का साहस
हम...... फिर मिलेंगे !!

_________________

© परी ऍम. 'श्लोक'

 

11 comments:

  1. और तुममे आ जाएगा
    मुझे स्वीकार कर पाने का साहस
    हम...... फिर मिलेंगे !!.....bahut badhiya

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  2. बहुतों के दिलों की बात कह डाली आपने अपनी कविता में और अब यह व्यक्तिगत ना रह कर सार्वभौमिक हो गयी है ! जाने कितने लोगों को इंतज़ार है मिलन के उस एक पल का जब एक तमाम उम्र की तन्हाई वे उस पल पर वार दें ! बहुत सुन्दर रचना !

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  3. बहुत ही भावुक सा वादा.....!!!

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  4. Utkrusht aur samvedansheel prastuti..
    keep your good work on. Baba Bless.

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  5. कल 27/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. भावों की सुन्दर शब्दों से की गई खूबशूरत पच्चीकारी

    वक्त की दहलीज़ पर दे गया दस्तक कोई
    आवाज कोई तन्हाईओं में मुझको सताती है

    अज़ीज़ जौनपुरी

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  7. मैं इंतज़ार कर लूँगी
    एक जनम....
    एक उम्र तन्हा और सही...Beautiful words Pari :)

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  8. ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  9. चलो!
    मत छोड़ना ये डोर
    थामे रहना यूँ ही
    मैं इंतज़ार कर लूँगी
    एक जनम....
    एक उम्र तन्हा और सही..
    आपके शब्दों में भावनाएं अपने पूरे यौवन पर होती हैं ! बहुत बहुत बधाई परी जी

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