आज
कई बार मैंने लिखा
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और
कई बार उसे मिटाया ..
आज
इतना कुछ था कहने को
कि
कागज़ कोरा ही रह गया..
आज
मेरी तन्हाईयाँ
मुझपर
टूटकर बरसी..
आज
मैंने कुछ पढ़ा
और
मेरी संवेदनाएं उबल गयी..
आज
मुझे ईर्ष्या हुई
किसी
से इतनी की
मैं
कह नहीं सकती
आज
मुझे लगा
कि
अब तलक
मुझे
बस फैसले सुनाये गए है
और
मैंने उसे अपनाया है
हालातो
के फटे कपड़ो को
समझौते
के सुई धागे से सिल
उसे
पहन लिया
और
एक....
शिकायत
भी नहीं की
क्यूँ
?
क्यूंकि
मेरी कोई मर्जी नहीं थी
मैंने
सबकी रज़ा को अपना समझ
सज़ा
काटने का बंदोबस्त कर लिया
हाँ
! पर जो मर्जी थी
मैं
उसे जान नहीं सकी
एक
कोने में दबी ये वो चाहत थी
जिसके
हिस्से में महज़ रास्ते थे
मगर
नसीब में मंज़िले नहीं
आज
मुझे लगा
मैंने
खुद को खुद से
बहुत
दिनों तक दूर रखा
इतना
दूर कि
आईने
मुझे नहीं पहचानते
और
मैं अपनी ही नज़रो में
अपनी
पहचान की मोहताज़ हूँ
आज
मुझे लगा
जो
मोहोब्बत मैंने दूसरो से कर
तकलीफो
का गढ़ बना लिया खुदको
अपनी
पेशानी पर धोखे की
अनगिनत
लकीर खींच ली
अपना
दामन अश्को का दरिया बना दिया
काश
! वो मोहोब्बत एक बार भी मैंने
अपने
आप से कि होती
तो
शायद !
आज
जिंदगी की तस्वीर
इसकदर
बेनूर और बदरंग न होती !!
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©
परी ऍम. 'श्लोक'
बहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteदिल को छु गयी
ReplyDeleteUtkrusht prasruti...wonderful
ReplyDeleteभावों का बहुत सुंदर संयोजन.
ReplyDeleteमोहब्बत के होते हैं रंग हजार ,नहीं कुछ सिवा आहत के ,गुजरे कई इस हालात से मगर पहचान और परख में नादान ठहरे ,बहुत अच्छी व्यंजना |
ReplyDeleteएक कोने में दबी ये वो चाहत थी
ReplyDeleteजिसके हिस्से में महज़ रास्ते थे
मगर नसीब में मंज़िले नहीं
आप दिल की गहराईओं को कलम से निखार देती हैं ....
"...अब तलक
ReplyDeleteमुझे बस फैसले सुनाये गए है
और मैंने उसे अपनाया है
हालातो के फटे कपड़ो को
समझौते के सुई धागे से सिल
उसे पहन लिया...."
I can relate to each and every word here..and how ! beautifully written Pari..I absolutely loved it ! :)
आपकी लिखी रचना बुधवार 05 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति !
ReplyDeleteहालातो के फटे कपड़े और समझोतो के धागे ।।।।।
ReplyDeleteहर शब्द रचना की परिपक्वता का परिचय देता हुआ ।
बहुत सुन्दर।
दिल में आता गया.... और लिखती गयी..... बहुत भावुक सी एक बच्ची :)
ReplyDeleteअति सुन्दर। शब्द और बिम्ब दोनों सुन्दर। हाँ मेरी सुरक्षा मेरा आनंद मेरी ख़ुशी मेरे अंदर ही है संसार की किसी व्यक्ति या वास्तु में नहीं है। यह सब मात्र समय सापेक्ष सादृश्य है ,प्रतीति है जबकि मैं (सेल्फ ,आत्मन )सनातन हूँ।
ReplyDeleteमैं सनातन चेतना ,शाशवत अस्तित्व हूँ। बाहर भी मैं हूँ अंदर भी मैं हूँ सब कुछ मेरी चेतना का ही विस्तार है। व्यक्ति के स्तर पर मैं आत्मा हूँ समष्टि के स्तर पर ब्रह्मन (परमात्मा )हूँ।
बेह्तरीन :) http://thesrjblogs.blogspot.in/?m=1
ReplyDeleteblog पर आयें :)
बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteआज मुझे लगा
ReplyDeleteजो मोहोब्बत मैंने दूसरो से कर
तकलीफो का गढ़ बना लिया खुदको
अपनी पेशानी पर धोखे की
अनगिनत लकीर खींच ली
अपना दामन अश्को का दरिया बना दिया
दिल की गहराइयों तक पहुँचते शब्द
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआयें- http://www.jeevanmag.com
बहुत खूबसूरत अहसास जो दिल की ज़मीं और पलकों की कोरों को नम कर गये ! बहुत सुन्दर !
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