अभी रुको
ज़रा मोहलत दो हमें
दिल को मनाने दो
रूह को बुझाने दो
कह दूँ उन्हें
कमरा खाली करें
सामान ले जायें अपना
न परछाई छोड़े
न निशान कोई
न ही कमी अपनी
ज़रा मोहलत दो हमें
दिल को मनाने दो
रूह को बुझाने दो
कह दूँ उन्हें
कमरा खाली करें
सामान ले जायें अपना
न परछाई छोड़े
न निशान कोई
न ही कमी अपनी
अभी ज़रा वक़्त दो
अभी इन दीवारो से टकराएं है
बेहद चोट खाएं है
ज़रा संभलने दो
उठ के चलने दो
जो उसने अज़ाब दिए हैं
अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
उससे शफा पाने दो
दर्द से निकल जाने दो
हम यकीनन फिर से सौदा करेंगे
हर रस्मे निभाएंगे
घर भी बसाएंगे
सुनेंगे तुम्हारी भी
करेंगे तुम्हारी भी
फिर
जिंदगी से हाथ मिलाने की कोशिश करेंगे
हर एक शर्त निभाने की कोशिश करेंगे
मगर
दरख्वास्त है इतनी
यादो को मिटाने के लिए
उनको भूल जाने के लिए
ज़रा...... वक़्त दो !!
___________________
© परी ऍम 'श्लोक'
ReplyDeleteमगर
दरख्वास्त है इतनी
यादो को मिटाने के लिए
उनको भूल जाने के लिए
ज़रा...... वक़्त दो !!
........
बेहद भावुक
बेहद सुन्दर
तिरे शहर का गज़ब का मिजाज़ है
ReplyDeleteके भूल जाने का रिवाज़ है
अज़ीज़ जौनपुरी
यादें वक्त के साथ धुँधली हो जाती है ।खुद से परे जाना आसान हो सकता है, खुद को भूल पाना नही...
ReplyDeleteऔर प्यार खुद की अभिव्यक्ति होती है।
नम नम से भाव ।
मगर
ReplyDeleteदरख्वास्त है इतनी
यादो को मिटाने के लिए
उनको भूल जाने के लिए
ज़रा...... वक़्त दो !!
...बहुत खूब...लेकिन क्या यादों को कभी भूल पाते हैं. वक़्त के साथ वे धूमिल हो सकती हैं, लेकिन दिल के किसी कोने में कहीं न कहीं छुपी रहती ही हैं...
वाह ! बहुत खूबसूरत सा वादा खुद से ! यह शै भी कुछ आसान नहीं ! इसके लिये भी बहुत हिम्मत और हौसले की ज़रूरत होती है ! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteYour poetry never ceases to amaze me Pari..always so beautiful :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteभावुकता से लबालब दरख्वास्त.... कौन मना कर सकता है भला !!!!
ReplyDeleteअभी ज़रा वक़्त दो
ReplyDeleteअभी इन दीवारो से टकराएं है
बेहद चोट खाएं है
ज़रा संभलने दो
उठ के चलने दो
जो उसने अज़ाब दिए हैं
अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
उससे शफा पाने दो
दर्द से निकल जाने दो
भावनाओं से सराबोर रचना परी जी
बहुत खूब ...
ReplyDeleteपर वक्त कहाँ देती है नियति ...
उम्दा लेखन है आपका ..........................हर शब्द अपने आपमें ह्रदय को कचोटता है ................बेहतरीन पंक्तियां ........................अभी ज़रा वक़्त दो
ReplyDeleteअभी इन दीवारो से टकराएं है
बेहद चोट खाएं है
ज़रा संभलने दो
उठ के चलने दो
जो उसने अज़ाब दिए हैं
अश्क-ए-तेज़ाब दिए हैं
उससे शफा पाने दो
दर्द से निकल जाने दो
मगर
ReplyDeleteदरख्वास्त है इतनी
यादो को मिटाने के लिए
उनको भूल जाने के लिए
ज़रा...... वक़्त दो !!....... बहुत गहरे तक छु गई
awesome and delicate use of words
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