हम
साहिल पर बने
घर
की तरह ......
हर
दफा ढहते हैं
हर
दफा बन जातें है
किसी
पल झूम कर मिलते हैं
आईने
से हम.....
कभी
कोने में दुबक जाते हैं
हम
कभी रात से डरते हैं
तो
कभी इन अंधरो से
सुबह
निकाल लातें हैं
हम
उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
उम्र
की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
कभी
शाखों पे खिलकर महकते हैं
कभी
ज़मीं पे तिनका-तिनका सा गिर जाते हैं
हम बड़ी
मशक्कत से ढूँढा करते हैं
जरिया
किसी वहम में जीने का
बस
फिर
इक
हकीकत की आग जलती है
और
मेरे ख्वाब झुलस जातें है
©
परी ऍम 'श्लोक'
लेखन में भाव सी सरल अभिव्यक्ति। दिल छु के निकलती है ।
ReplyDeleteवहम में जीना, सपनों में जीने जैसा होता है ... जो टूट जाता है जल्दी साहिल के घर की तरह ...
ReplyDeleteवहम में कब तक जिया जा सकता है, एक दिन तो हक़ीकत के सामने उसे हारना ही होगा...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजिन्दगी भी तो वहम है पर बहुत खुबसूरत है गर जीना आ जाये।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसाहिल पे थके हुए एक जोगी की बासुरी
तकलीन कर रही है किनारा है ज़िन्दगी
तूफ़ान में सफ़ीना-ए-हस्ती को छोड़ कर
मल्लाह गा रहा है दरिया है ज़िन्दगी
तकलीन- नसीहत
सफ़ीना-ए-हस्ती -जीवन की नैया
(सायद फैज़ या अदम )
bahut sundar
ReplyDeleteसुन्दर - सराहनीय एवं सार्थक रचना !!!
ReplyDeleteहम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
ReplyDeleteउम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
बहुत ही गहरे शब्द लिखे हैं परी जी आपने
हम साहिल पर बने
ReplyDeleteघर की तरह ......
हर दफा ढहते हैं
हर दफा बन जातें है! सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीया परी जी, साभार!
bahut khub , behatareen!
ReplyDeleteहम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
ReplyDeleteउम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! हर शब्द मन को छू जाता है !
भावपूर्ण रचना...बेहद उम्दा !!
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