Sunday, November 9, 2014

और मेरे ख्वाब झुलस जातें है .....


हम साहिल पर बने
घर की तरह ......
हर दफा ढहते हैं
हर दफा बन जातें है
 
किसी पल झूम कर मिलते हैं
आईने से हम.....
कभी कोने में दुबक जाते हैं

हम कभी रात से डरते हैं
तो कभी इन अंधरो से
सुबह निकाल लातें हैं
 
हम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
उम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
कभी खुद से ही छूट जाते हैं
कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
कभी रेत सा बिखर जाते हैं
 
कभी शाखों पे खिलकर महकते हैं 
कभी ज़मीं पे तिनका-तिनका सा गिर जाते हैं     
 
हम बड़ी मशक्कत से ढूँढा करते हैं
जरिया किसी वहम में जीने का
बस फिर
इक हकीकत की आग जलती है
और मेरे ख्वाब झुलस जातें है

 
____________________
© परी ऍम 'श्लोक' 

12 comments:

  1. लेखन में भाव सी सरल अभिव्यक्ति। दिल छु के निकलती है ।

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  2. वहम में जीना, सपनों में जीने जैसा होता है ... जो टूट जाता है जल्दी साहिल के घर की तरह ...

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  3. वहम में कब तक जिया जा सकता है, एक दिन तो हक़ीकत के सामने उसे हारना ही होगा...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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  4. जिन्दगी भी तो वहम है पर बहुत खुबसूरत है गर जीना आ जाये।
    बहुत सुन्दर रचना ।

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  5. सुन्दर रचना
    साहिल पे थके हुए एक जोगी की बासुरी
    तकलीन कर रही है किनारा है ज़िन्दगी
    तूफ़ान में सफ़ीना-ए-हस्ती को छोड़ कर
    मल्लाह गा रहा है दरिया है ज़िन्दगी

    तकलीन- नसीहत
    सफ़ीना-ए-हस्ती -जीवन की नैया
    (सायद फैज़ या अदम )

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  6. सुन्दर - सराहनीय एवं सार्थक रचना !!!

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  7. हम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
    उम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
    कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
    कभी खुद से ही छूट जाते हैं
    कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
    कभी रेत सा बिखर जाते हैं
    बहुत ही गहरे शब्द लिखे हैं परी जी आपने

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  8. हम साहिल पर बने
    घर की तरह ......
    हर दफा ढहते हैं
    हर दफा बन जातें है! सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीया परी जी, साभार!

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  9. हम उस किनारे से मिलने की आरज़ू में
    उम्र की धार में ख़ामोशी से बहे जाते हैं
    कभी धुंधला सा अक्स पकड़ते हैं
    कभी खुद से ही छूट जाते हैं
    कोई पर्वत कभी बनते हैं तो..
    कभी रेत सा बिखर जाते हैं

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! हर शब्द मन को छू जाता है !

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  10. भावपूर्ण रचना...बेहद उम्दा !!

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