अजब
है न
भावनाओं में
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हम स्त्रियां ऐसी
ही होती हैं
भावनाओं में
बह
जाने की आदि
सरलता से
सरलता से
विश्वास
करने में माहिर
हर रिश्ते को
संभाल के रखने की शौकीन
फिर चाहें
हर रिश्ते को
संभाल के रखने की शौकीन
फिर चाहें
इन्हे
संभालते-संभालते
खुद ही को खो जाना पड़े
खुद ही को खो जाना पड़े
कच्ची मिटटी के
बर्तन की तरह
आकार
लेती
हर परिस्थिति में
खुद को ढाल लेती
रात
चाँद बन जाती
सुबह सूरज की किरणें
अपनों
की मुस्कराहट में
अपनी ख़ुशी तलाशने में जुटी
अपनी ख़ुशी तलाशने में जुटी
सम्मान से खिल उठती
चंद इल्जामों से मैली होती
हम
स्त्रियाँ ऐसी ही होती हैं !!
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©
परी ऍम 'श्लोक'
स्त्रियों को सही मायनों में परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteगजब की उपमा..... गजब के भाव.... कुल मिलाकर एक बहुत ही सराहनीय रचना....!!!!
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteबहुत सटीक चित्रण...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-11-2014) को "स्थापना दिवस उत्तराखण्ड का इतिहास" (चर्चा मंच-1792) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर परी जी !!!
ReplyDeleteसच लिखा है.
ReplyDeleteतभी तो शक्ति स्वरूपा कहलाती हैं ..........
ReplyDeleteसटीक चित्रण ... नारी के अंतर्मन को चित्रण है ...
ReplyDeleteकच्ची मिटटी के
ReplyDeleteबर्तन कि तरह
आकार लेती ...
हर परिस्थिति में
खुद को ढाल लेती..
रात चाँद बन जाती
सुबह सूरज कि किरणे
सच में ऐसी ही होती हैं ?
नारी सचमुच ऐसी होती है
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