Monday, November 17, 2014

वो खतो का सिलसिला....और आज का प्रेम


सोचती हूँ कि
कितना मनभावन लगता होगा
खतो का वो इक अरसे से चलता सिलसिला
उन बंद लिफाफो में गुलाब से महकते जज़्बात
जो आज के आलम में धुआँ-धुआँ है
जिसे अब कोई छू भी नहीं पाता
जिसे महसूस करने कि कोशिश में
लोग उतार देते हैं तन का लिबास
वो रूहो का रिश्ता
शायद !अब नहीं कायम होता
शुरू होती है मोहोब्बत इंटरनेट से
और मिलने के कयास तक पहुँचते-पहुँचते
सब कुछ मिटटी में मिल जाता है
कहाँ है ?
अब वो सब्र लोगो में
फ़ोन कि हर घंटी के साथ
बयां होने लगी है दास्तान दिल की  
कितने संजीदा होते थे पहले ये मुआमले
प्यार में कितना सब्र होता था
पाकीज़गी होती थी..ह्या होती थी
किन्तु
आज आधुनिकता कि भागम-भाग में
वो दौर अपनी सभ्यताओ के साथ
कहीं बहुत पीछे छूट गया...
सब कुछ बदल गया बदन पर पड़े
इक मीटर कपड़े कि तरह ही
हर एहसास कम हो गया... 

लहरो के आने के साथ
ये इश्क़ पनपता
जाने के साथ ही समाप्त हो जाता
चंद पल में किसी को पा लेना
कुछ लम्हों में किसी को खो देना
कुछ घंटो में किसी को भुला देना

ज़रा सी कड़क बात से
अहम कि ज़मीन तिलमिला जाती हैं
भाव-भंगिमाओं के घने कोहरे छट जाते
कसमे वादे पान कि तरह खाए जाते हैं
और फिर थूक दिए जाते हैं ...
 
इक लंबा फासला हो गया है
कल और आज के प्रेम के मध्य
जो अब
मिटाने से भी मिटता नहीं !!

________________
परी ऍम. 'श्लोक'

21 comments:

  1. Lovely ! You are gifted with words Pari :)

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  2. इक लंबा फासला हो गया है
    कल और आज के प्रेम के मध्य
    जो अब
    मिटाने से भी मिटता नहीं !!
    ...बिलकुल सच...बहुत सटीक और भावमयी प्रस्तुति...

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  3. चंद पल में किसी को पा लेना
    कुछ लम्हों में किसी को खो देना
    कुछ घंटो में किसी को भुला देना
    ..
    ..
    ..
    बेहद सटीक बेहद प्रभावशाली

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  4. सत्य को बयान करती रचना |

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  5. कहाँ है ?
    अब वो सब्र लोगो में
    फ़ोन कि हर घंटी के साथ
    बयां होने लगी है दास्तान दिल की
    कितने संजीदा होते थे पहले ये मुआमले
    प्यार में कितना सब्र होता था
    पाकीज़गी होती थी..ह्या होती थी
    ये आज के नए दौर का प्रेम है परी जी ! पल में आसमान की ऊंचाइयां पा लेता है और पल में फर्श पर होता है ! शानदार और सार्थक पंक्तियाँ

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  6. ये तो बहुत सुन्दर सिलसिला परोसा आपने जी :)

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  7. समय चाहे बदल गया घो माध्यम बदल गया हो पर प्रेम तो फिर भी जिन्दा रहता है .... उसको दिल से दिल तक जाना होता है ... हाँ अब शायद सब्र ख़त्म हो गया है ...

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  8. प्रेम व्यक्त करने के तरीके में बदलाव आ गया है.. अब वो चिट्ठियों का सब्र, गुलाब की खुशबु सब खो गयी.. अब तो नए नए आयाम है.. यथार्थ व्यक्त करती रचना...

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  9. परी जी आप की कलम में जादू है ...बहुत सुंदर रचना

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  10. उस समय के प्यार और आज के प्यार में जमीं आसमान का अंतर है! पहले शायर अपनी माशूका से बिना देखे भी सच्ची मोहब्बत करते थे, किसी शायर ने अपनी पर्दानशीं माशूका पर लिखा भी है-
    ख़्वाब में भी आये तो मूॅह को छुपा लिया,
    देखो, जहाँ में पर्दानशीं और भी तो हैं
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया परी जी!
    धरती की गोद

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  11. pyar me to pakizagi hi hoti or jha nhi wo pyar nhi.....kafi sundar rachana

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  12. Speechless. . .another amazing creation by you.

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  13. बहुत बढ़िया परी जी।

    सादर

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  15. सही कहा कस्मे वादे पान की तरह खाया और थूका. आज के सन्दर्भ का सटीक चित्रण, बधाई.

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  16. बहुत सुन्दर भाव भर दिए है आपने इस पोस्ट में...सटीक चित्रण

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  17. बिलकुल सच है ! जहाँ व्यक्तित्व में गहराई नहीं होती वहाँ प्रेम भी उथला और सतही ही होता है ! ऐसे प्रेम को पाने का सुख और खोने का दर्द भी उतना ही क्षणिक होता है ! बढ़िया अभिव्यक्ति !

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