तुम
गए तो…कुछ यूँ हुआ
लम्हा-लम्हा
बेनूर हुआ
काटने
लगे दिन-रात मुझे
दहशत
में मेरा सुकूं हुआ
जज़्बातों
ने आत्महत्या की
मेरे
ख्वाबो का भी खूं हुआ
तुम
गए तो....कुछ यूँ हुआ ....
यादों ने छालों से भर दिया जेहन
खूब
तमाशा-ए-आरज़ू हुआ
हमें
हर शक्स ही धोखा लगा
वफाओं
का जबसे हाल यूँ हुआ
झुलस
ही गयी रौनकें सारी
हवायें भी गर्म लू हुई
तुम
गए तो....कुछ यूँ हुआ
बेबस
हम तमाशाबीन से रहे
दिल
की दुनियाँ जब धूं-धूं हुआ
तेवर
फ़ज़ाओं ने बदला
तेजाब
बारिश का हर बूँ हुआ
पतझड़
ने सुखाया इतना
सावन
में भी न इक फूल हुआ
हम
न जी सके और न मर सके
सजा
मुकर्रर ही यूँ हुआ
तुम
गए तो...कुछ यूँ हुआ
दर्द
श्लोक-ए-पहलु हुआ
तुम गए तो...कुछ यूँ हुआ........!!
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©
परी ऍम. ‘श्लोक’
दर्द को बयां करती सुंदर रचना..।।
ReplyDeleteकुछ यूँ हुआ ,
ReplyDeleteतेरे शब्दों को लबों
ने छुआ
तो सुकूँ हुआ।
बहुत बहुत खूबसूरत अहसास और लफ़्ज़े बयां।
बढ़िया :)
ReplyDeleteबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है बेहद
ReplyDeleteजो कुछ हुआ बड़ा तकलीफदेह हुआ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteBeautiful :)
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ReplyDeleteभावात्मक एवं बेहतरीन :)
ReplyDeleteTouching.
ReplyDeleteवफाओ का जबसे हाल यूँ हुआ
ReplyDeleteझुलस ही गयी रौनके सारी
सर्द हवा भी गर्म लू हुआ
तुम गए तो....कुछ यूँ हुआ
एकदम बढ़िया परी जी
पास कुछ भी नहीं दर्द ही दर्द है वो समझे नहीं तो हम क्या करें ,
ReplyDeleteसुनके दर्द की दास्ताँ आपकी दर्द पागल हुआ तो हम क्या करें
जज़्बातों ने आत्महत्या की
ReplyDeleteमेरे ख्वाबो का भी खूं हुआ
...बेहद उम्दा...