तुमने कहा
चलता हूँ
लगा थम गया सब
फिर तनहा हुए हम
दिल ने तुम्हारी
उंगलियो को पकड़
बड़ी ज़ोर से कहा
सुनो !
कुछ और पल रुक जाते
तुमने मुड़ के पूछा
कुछ कहा ?
मैंने झट से इंकार कर दिया
क्या कहना ज़रूरी है ?
हर बार ...बार-बार
और क्या ?
मेरे कह भर देने से
तुम नहीं जाओगे
अगर हाँ तो फिर
हर ख़ामोशी को तोड़ती हूँ
और ये राज़ खोल देती हूँ
हाँ !
ये जो नन्हे नन्हे फूल
ज़ज़्बातो कि
वादियों में खिल उठें है
मैं जो भीग रही हूँ
अहसासों के झरने में हर शब
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
और जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ
चलता हूँ
लगा थम गया सब
फिर तनहा हुए हम
दिल ने तुम्हारी
उंगलियो को पकड़
बड़ी ज़ोर से कहा
सुनो !
कुछ और पल रुक जाते
तुमने मुड़ के पूछा
कुछ कहा ?
मैंने झट से इंकार कर दिया
कहो न ....
नहीं जानते थे तुम ?
मेरी न का मतलब
हाँ... है
नहीं जानते थे तुम ?
मेरी न का मतलब
हाँ... है
बेशक
तुम जानते हो
ख़ामोशी मेरी ...
फिर भी सोचते रहे
जुबां से कहूँ
और तुम्हे यकीन हो जाए
तुम जानते हो
ख़ामोशी मेरी ...
फिर भी सोचते रहे
जुबां से कहूँ
और तुम्हे यकीन हो जाए
क्या कहना ज़रूरी है ?
हर बार ...बार-बार
और क्या ?
मेरे कह भर देने से
तुम नहीं जाओगे
अगर हाँ तो फिर
हर ख़ामोशी को तोड़ती हूँ
और ये राज़ खोल देती हूँ
हाँ !
ये जो नन्हे नन्हे फूल
ज़ज़्बातो कि
वादियों में खिल उठें है
मैं जो भीग रही हूँ
अहसासों के झरने में हर शब
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
और जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ
सिर्फ कुछ पल के लिए और
सुनो न ! रुक जाओ !!!
सुनो न ! रुक जाओ !!!
______________________
© परी ऍम. 'श्लोक'
वाह, सुंदर..।।
ReplyDeleteसुनो न ! रुक जाओ !!!.....बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteप्रेम में मन्ना मनाना तो चलता रहता है ...
ReplyDeleteये सिलसिला रुकना नहीं चाहिए ...
क्या कहना जरूरी है हर बार.....
ReplyDeleteजुबाँ खामोशी ओढे हो
आँख पलकों से ढकी हो....
फिर भी दिल की आवाज दिल तक पहुँच जाती है।
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
ReplyDeleteऔर जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ
.
.बहुत शशक्त अभिव्यक्ति भावनाओं की ।
wah...behad khubsoorat rachna
ReplyDeleteये जो नन्हे नन्हे फूल ज़ज़्बातो के...जिंदा शब्दों से गुफ्तगू की तरह। बधाई।
ReplyDeleteऔर जज्बात पर फरमाते हैं फैज कुछ इस तरह....
'जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरे है
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
और अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिये जाते हैं
ज़िन्दगी क्या किसी मुफ़्लिस की क़बा है
जिस में हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं..'
बहुत खूब ये मोहब्बत हे।
ReplyDeleteआपकी रचनाएं तस्वीर सी खींच देती हैं ! सारे दृश्य सजीव हो उठते हैं और पाठक को एक अनोखी भावभूमि पर ले जाते हैं ! इसी तरह लिखती रहें ! आपको पढ़ना अच्छा लगता है !
ReplyDeleteकहो न ....
ReplyDeleteनहीं जानते थे तुम ?
मेरी न का मतलब
हाँ... है
बेशक
तुम जानते हो
ख़ामोशी मेरी ...
फिर भी सोचते रहे
जुबां से कहूँ
और तुम्हे यकीन हो जाए
प्रेम की भाषा बड़ी अलग किस्म की होती है ! बहुत गहरे शब्द
मैं जो भीग रही हूँ
ReplyDeleteअहसासों के झरने में हर शब
ये साँसे जो तुमने भर दी हैं मेरी साँसों में
और जीने कि तलब बढ़ा दी है
ये जो तमाम ख्वाब
पलकों को दे दियें हैं तुमने
इन सबका वास्ता है तुम्हे….. मत जाओ
सिर्फ कुछ पल के लिए और
सुनो न ! रुक जाओ !!!.............वाह ....बहुत खुबसूरत...