नहीं पढ़ाया गया उसे
घर के चूल्हे-चौके में
झोंक दिया गया
उसपर जवानी आई
किन्तु उसका मानसिक विकास
रोक दिया गया
आरम्भ से पढ़ाया गया
सिर्फ और सिर्फ
उसके दायित्व का अध्याय
ब्याहा गया छोटी उम्र में
कन्यादान के पूण्य के लालच में
सबने भूखे-प्यासे रह कन्यादान कर
खूब पूण्य कमाया
छोटी उम्र में गुड्डी को
शादी के अग्नि-कुण्ड में जलाया
महावारी का पता चलते ही
दे दिया गया गौना
हो गयी गुड्डी की विदाई
कम उम्र में तीन बच्चो की माँ बन गयी
जवानी में पति चल बसा
लाडली पर नौबत आई
कैसे बच्चे पाले ?
कैसे घर चलाये ?
रिश्ते-नाते सबने पल्ला झाड़ा
समाज भूल गया अपना दायित्व
किन्तु सबने समय-समय पर
अपनी-अपनी बारी निभायी
उँगली दर उँगली ज़रूर उठायी
गाँव का कोई पुरुष जो पूछ बैठे हाल
तानो से कर देते गुड्डी को बेहाल
औरत होना बड़ा कसूर बन गया
दिल में जख्म नासूर बन गया
दिन भर जलकर मज़दूरी में जो कुछ पाती
पेट न बच्चो का फिर भी भर पाती
खुद के भूख को मुक्का मार बेचारी सो जाती
कुछ दिन तो ऐसे गुज़र गया
फिर उसका एक बच्चा बीमारी-गरीबी से मर गया
एक बच्चा मनोरोग से ग्रस्त हो गया
चिन्ताओ ने ऐसा जाल बुना
दुनिया उसके लिए शमशान बन गयी
काली टी.बी. ने उसे जकड़ लिया
और अमोनिया ने पकड़ लिया
जीवन उसका दुःखो की भेट चढ़ गया
एक शिकायत अंतस में घर कर गया
अब वो कहती है ले-ले कर सिसकियाँ
क्यों इतना सिखाया मुझे
की मैं भोग हूँ पति का ...
उसके उपरान्त रोग अपने अस्तित्व का
कभी न बन सकी आधार अपना
मैं लड़ सकती थी इस पीड़ा से
बचा लेती अपना कोमल बच्चा
मगर तुमने लड़ने से पहले हराया मुझे
बाबुल क्यों नहीं पढ़ाया मुझे ?
आखिर क्यों नहीं पढ़ाया मुझे ?
_____________________घर के चूल्हे-चौके में
झोंक दिया गया
उसपर जवानी आई
किन्तु उसका मानसिक विकास
रोक दिया गया
आरम्भ से पढ़ाया गया
सिर्फ और सिर्फ
उसके दायित्व का अध्याय
ब्याहा गया छोटी उम्र में
कन्यादान के पूण्य के लालच में
सबने भूखे-प्यासे रह कन्यादान कर
खूब पूण्य कमाया
छोटी उम्र में गुड्डी को
शादी के अग्नि-कुण्ड में जलाया
महावारी का पता चलते ही
दे दिया गया गौना
हो गयी गुड्डी की विदाई
कम उम्र में तीन बच्चो की माँ बन गयी
जवानी में पति चल बसा
लाडली पर नौबत आई
कैसे बच्चे पाले ?
कैसे घर चलाये ?
रिश्ते-नाते सबने पल्ला झाड़ा
समाज भूल गया अपना दायित्व
किन्तु सबने समय-समय पर
अपनी-अपनी बारी निभायी
उँगली दर उँगली ज़रूर उठायी
गाँव का कोई पुरुष जो पूछ बैठे हाल
तानो से कर देते गुड्डी को बेहाल
औरत होना बड़ा कसूर बन गया
दिल में जख्म नासूर बन गया
दिन भर जलकर मज़दूरी में जो कुछ पाती
पेट न बच्चो का फिर भी भर पाती
खुद के भूख को मुक्का मार बेचारी सो जाती
कुछ दिन तो ऐसे गुज़र गया
फिर उसका एक बच्चा बीमारी-गरीबी से मर गया
एक बच्चा मनोरोग से ग्रस्त हो गया
चिन्ताओ ने ऐसा जाल बुना
दुनिया उसके लिए शमशान बन गयी
काली टी.बी. ने उसे जकड़ लिया
और अमोनिया ने पकड़ लिया
जीवन उसका दुःखो की भेट चढ़ गया
एक शिकायत अंतस में घर कर गया
अब वो कहती है ले-ले कर सिसकियाँ
क्यों इतना सिखाया मुझे
की मैं भोग हूँ पति का ...
उसके उपरान्त रोग अपने अस्तित्व का
कभी न बन सकी आधार अपना
मैं लड़ सकती थी इस पीड़ा से
बचा लेती अपना कोमल बच्चा
मगर तुमने लड़ने से पहले हराया मुझे
बाबुल क्यों नहीं पढ़ाया मुझे ?
आखिर क्यों नहीं पढ़ाया मुझे ?
© परी ऍम. 'श्लोक'
संवेदनशील रचना, बहुत खूब..।।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी न बन सकी आधार अपना
ReplyDeleteमैं लड़ सकती थी इस पीड़ा से
बचा लेती अपना कोमल बच्चा
मगर तुमने लड़ने से पहले हराया मुझे
बाबुल क्यों नहीं पढ़ाया मुझे...................बहुत ही मार्मिक ...
Bahut behtareen, lajawaab
ReplyDeleteदिल को छू लेने वाली रचना।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना । वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं मर्मस्पर्शी रचना.
ReplyDeleteमर्म्स्पर्शीय ... पता नहीं आज भी क्यों ऐसा हो रहा है ... समाज क्यों नहीं जाग रहा समझ से बहार है ...
ReplyDeleteविचारणीय , मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण....मन को छू गयी...
ReplyDeleteभावपूर्ण पोस्ट।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक किन्तु समाज की विकृत सोच का असली तस्वीर खिंचा है आपने 'परी एम् श्लोक ' जी ! बधाई l
ReplyDeleteपाखी (चिड़िया )
विकृत सोच का तस्वीर खिंचा है!Lekhika'Pari M Shlok ji ne
ReplyDeleteमै थी लड़की ,चूल्हा चौके की ,थी एक रैना ,हाय ज़िम्मेदारी पैना |
पुण्य की लालच ,अपूर्णता में व्याह ,व्याधियों का बिछौना ,अग्नि कुण्ड में मैना|
माँ सी ममता निज ,बच्चा लिए पली ,जवानी में बनी खिलौना ,कच्ची ली थी गौना |
और नहीं नासूर ,केवल जख्म कसूर ,दिन भर करती मजदूरी ,पेट पलना मजबूरी |
चिंतित रहती चकोरी ,एनेमिया लिए थी गोरी ,पढ़ी -लिखी होती छोरी ,गीत गजल गाती गोरी ||
मैं लड़ सकती थी इस पीड़ा से
ReplyDeleteबचा लेती अपना कोमल बच्चा
मगर तुमने लड़ने से पहले हराया मुझे
बाबुल क्यों नहीं पढ़ाया मुझे ?
...............बेहद मर्मस्पर्शी रचना । वाह
किन्तु सबने समय-समय पर
ReplyDeleteअपनी-अपनी बारी निभायी
उँगली दर उँगली ज़रूर उठायी
गाँव का कोई पुरुष जो पूछ बैठे हाल
तानो से कर देते गुड्डी को बेहाल
औरत होना बड़ा कसूर बन गया
दिल में जख्म नासूर बन गया
ये वेदना , ये मंजर जिसने देखे हैं , झेले हैं वो बेहतर समझते होंगे किन्तु आपने जिस तरह उनकी अंतस की पीड़ा को अपने शब्दों में व्यक्त किया है वो भी दर्द का एहसास कराते हैं परी , न न परवीन जी ! आखिर की पंक्तियाँ बाबुल क्यों न पढ़ाया मुझे। …………… एक सन्देश दे जाती हैं !!
नारी शिक्षा का महत्व दर्शाती भावपूर्ण कविता...! परी जी, नारी जीवन की यही सच्चाई है .उसे पढ़ाया ही नही जाता की वो जीवन मे आगे कुछ अच्छा कर सके!
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR
ReplyDeleteएक बेबस अबला नारी के जीवन की सम्पूर्ण कहानी कह सुनाई अपनी रचना में ! इसीलिये लड़कियों को पढ़ाना अति आवश्यक है ! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDelete