Friday, December 5, 2014

महज़..........मोहब्बत है !!

वक़्त ठहरा है
या इंतज़ार नहीं होता हमसे
या फिर शायद
मोहब्बत में इंतज़ार की घड़ियाँ
कुछ इस कदर और लम्बी हो जाती है

तो फिर क्या ये मोहब्बत है
जिसमें डूबी-डूबी रहती हूँ मैं
और
मेरे होश-ओ-हवास कि
कश्तियों पर हर वक़्त
सवार रहते हो तुम

तुम्हारे ख्याल जेहन के
घर..आँगन में ..
लुक-छुपी खेलते रहते हैं
तुम्हारी याद का सन्दूख
खुलते ही महक उठता है
गुज़रा हुआ वो दौर

मैं तुम्हे महसूस करके ओर...
मखमली हो जाती हूँ
तुम्हारी याद में
भूल जातें हैं हम वज़ूद तक अपना

मुझे तो मालूम नहीं
मगर
है क्या कोई सूत्र?
मैं...तुम...और इश्क़ को
जोड़ गाठ के कुछ आये
और
मसला साफ़ हो जाए

बताओ कोई तरकीब
कैसे पुख्ता करूँ यकीन
कि ये बेहिसाब जो हुआ है
मुझे तुमसे...

वो ओर कुछ नहीं ......
महज़..........मोहब्बत है!!

 
______________________
© परी ऍम. 'श्लोक'

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-12-2014) को "पता है ६ दिसंबर..." (चर्चा-1819) पर भी होगी।
    --
    सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मुहब्बत हो तो ये व्ह्श्वास भी नहीं होता ... बहुत खूब ...

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  3. कल 07/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. वाह! बहुत ख़ूबसूरत एहसास पिरोये हैं आपने... मुहब्बत तो में तो यही सब होता है...

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  5. मुझे तो मालूम नहीं
    मगर
    है क्या कोई सूत्र?
    मैं...तुम...और इश्क़ को
    जोड़ गाठ के कुछ आये
    और
    मसला साफ़ हो जाए
    परी जी , आपकी रचनाओं में ताजगी है ! आप ज्यादातर सामाजिक विषय लेती हैं लेकिन उन्हें इस तरह से लिखती हैं की सन्देश भी बने और प्रेरणा भी ! बहुत बढ़िया , लिखते रहिये

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  6. वाह ! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  7. hosh o hawaas ki kastiyan..jehan k ghr aangn...or mhsoos kr k makhamali ho jana.......hnn ji ye muhobat hai..

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