वो पीड़ा जो कल
तमाम माओं ने महसूस की
और जो कभी न मिटने वाला
हमेशा चुभने वाला जख्म है...
नहीं शब्द नहीं
दर्द है बेहद दर्द
मासूम बच्चो की चीखें
मुझे सुनाई देती हैं
मैं विवश उन्हें बचा नहीं पाती
फट जाती है छाती
अपनों को खोकर
बिलखते हुए लोगो को देख
खून की होली
खेलतें है
बच्चो का शिकार करते हैं
अपनी कायरता का
सबसे बड़ा प्रमाण देकर
अपने आपको बहादुर
समझते है
मस्जिद...मंदिर..
शिक्षा के मंदिर पर
घावा बोलतें है
नहीं हैं ये किसी मज़हब के
किसी देश के हितैषी
खून पीना शौक है इनका
लाश देखकर सकून
महसूस करते हैं
हथियारों के दम पे
कूदने वालो..
खुदा के बन्दों को
मौत के घाट उतारने वालो
बेहद जल्दी तुम्हे तुम्हारा
मुआवज़ा मिलेगा
बेहद जल्द तुम्हारे लिए
घृणा का सैलाब उठेगा
और तुम्हे तबाह कर देगा
नहीं बचोगे तुम..
इससे भयानक मौत मरोगे तुम
तब नहीं मनाएगा कोई मातम
होगा जश्न सकून का अमन का
हैवानो के साथ दरिंदो के साथ
अल्ला कभी नहीं होता..
जिस अल्ला का तुम
तुम्हारे साथ होने का दम भरते हो
उसी अल्ला के बन्दों की
निर्मम हत्या करते हो
अल्ला तुम्हारे साथ नहीं है आतंकवादियों....
अल्ला तुम्हारा नहीं है !!
© परी ऍम. 'श्लोक'
(पेशावर पर बच्चो पर हुए हमले से आहत हूँ ..हमले में हुए शहीदो को श्रद्धांजलि...!!)
इस पाशविक बर्बरता पर क्या कहा जाय.
ReplyDeleteराक्षस जो इन्साँ का लबादा लिए घूम रहे है।
ReplyDeleteफिर भी प्रकृति के भी अपने नियम कायदे है, कोई नहीं बच सकता ।
शर्मिंदा है इंसानियत आज ......और होती रही है
ReplyDeleteअब तो भगवान ही स्वयं अवतार लेवें तभी सृष्टि का कल्याण सम्भव है? बहुत ही मार्मिक वर्णन।
ReplyDeleteनहीं हैं ये किसी मज़हब के
ReplyDeleteकिसी देश के हितैषी
sahi kaha hai!
शर्मिंदा है पूरा विश्व ,,,, हर देश के लोग दुखी हैं पर इन हैवानो को ...कुछ नहीं समझ में आता है न आएगा ....जिस अल्लाह का तुम
ReplyDeleteतुम्हारे साथ होने का दम भरते हो
उसी अल्लाह के बन्दों की
निर्मम हत्या करते हो ......सही कथ्य ....
यदि अब भी भगवन धरती पे न उतरे तो क्या ये समझे की भगवान है ही नहीं
ReplyDeleteमैं बचपन से ये ही मानता जानता और समझता आया हूँ ।
भगवान है ही नहीं ।।।।। ऐसी हर त्रासदी घटना हादसा मेरी बात की पुख्ता बनाता जाता है
काश भगवन होते ।
सही कहा.... ऐसे लोग किसी धर्म या जाति के नहीं होते... बल्कि किसी के भी नहीं होते.... इन्हें प्यारा होता है... अपना जुनून - अपना पागलपन.... बस्स्स्स्स !!!!
ReplyDeleteजो खुद अपने को खुद समझ बैठते हैं उनका अल्लाह कभी न हुआ है न होगा ...
ReplyDeleteसामयिक चिंतन प्रस्तुति ...
आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता और न ही कोई धर्म। यह एक विकृति है जिसका खात्मा जरूरी है।
ReplyDeleteमजहब के नाम पर मासूमों की बलि दे डाली… संवेदनशील। ।
ReplyDeleteखुदा इन आतंकवादियों का है या नहीं कहा नहीं जा सकता लेकिन वह खामोश रह कर इनके हौसले ज़रूर बुलंद कर रहा है ! वरना कैसे कर पाते ये चंद आतंकवादी इतने बेगुनाह बच्चों की ऐसी नृशंस ह्त्या ! कहाँ है भगवान जो अपने बेगुनाह बन्दों को इस तरह जिबह होता हुआ देख रहा है चुपचाप !
ReplyDeleteहैवानो के साथ दरिंदो के साथ
ReplyDeleteअल्ला कभी नहीं होता..
जिस अल्ला का तुम
तुम्हारे साथ होने का दम भरते हो
उसी अल्ला के बन्दों की
निर्मम हत्या करते हो
अल्ला तुम्हारे साथ नहीं है आतंकवादियों....
अल्ला तुम्हारा नहीं है !!
मजहब के नाम पर मासूमों की बलि दे डाली… संवेदनशील। ।