मुट्ठी
भर लोग
हमपर इसलिए हावी हैं
क्योंकि
हमारा हुजूम
बेहद खोखला है
अंदर ही अंदर
ईर्ष्या का दीमक
इसे चाटता जा रहा है
हमपर इसलिए हावी हैं
क्योंकि
हमारा हुजूम
बेहद खोखला है
अंदर ही अंदर
ईर्ष्या का दीमक
इसे चाटता जा रहा है
वरना उनमें
कूट-कूट
कर
जिहाद
के नाम पर
जितनी
नफरत भरी गयी है
यदि
हममें एकता के लिए
आधी
भी मोहोब्बत होती
गर
उनकी दहशत की..
क्रूरता
की
आधी
भी हममें
नेकी
और ईमानदारी होती
भाईचारे
का नाटक ख़त्म कर
यदि हम वाकई भातृभाव रखते
यदि हम वाकई भातृभाव रखते
तो
उनकी औकात क्या
की
वो नज़र उठा
किसी
देश की तरफ
ताक
भी लें....
उनके
हाथ में इतनी ताकत कहाँ
की
उठायें हथियार दाग दें..
उंगलियो
में इतनी जान कहाँ की
किसी
की देश की
एक
मक्खी तक मसल दें ...
चंद
लोग जो हमारे फूंक से उड़ जायें
हमारी
चुप्पी ने उन्हें अधिकार दिया है
कि
वो हमें ही तबाह करते रहें
आतंकवाद
किसी एक देश की समस्या नहीं
वे
विश्व भर का संक्रमण है ..
आओ!
उठो ! एकजुट हो
उखाड़
दो इनकी जड़ें
जो
इस्लाम के नाम पर
जिहाद
के नाम पर
मौत
का तांडव करते हैं
अगर
नहीं तो डाल दो हथियार
करो
आर या पार ...
मत
करो कोई कारवाही
स्वीकार
करलो आतंक की गुलामी
कम से
कम तब
बदले
के नाम पर नहीं छीने जाएंगे
किसी
माँ से उनके बच्चे ...!!
___________________________
© परी ऍम 'श्लोक'
आओ! उठो ! एकजुट हो
उखाड़ दो इनकी जड़ें
जो इस्लाम के नाम पर
जिहाद के नाम पर
मौत का तांडव करते हैं
.............................
सही बात कही बहुत खूब कही
sach kaha apne.......apnane wali baat hai ye
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : आदि ग्रंथों की ओर - दो शापों की टकराहट
bahut achhi aur sahi baat ki hai aapne pari ji ....
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (19-12-2014) को "नई तामीर है मेरी ग़ज़ल" (चर्चा-1832) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सराहनीय चेतावनी - समय पर प्रतिरोध न किया गया तो व्यर्थ के शोरगुल और उछल-कूद से नहीं होनेवाला !
ReplyDeleteआओ! उठो ! एकजुट हो
ReplyDeleteउखाड़ दो इनकी जड़ें
जो इस्लाम के नाम पर
जिहाद के नाम पर
मौत का तांडव करते हैं
सराहनीय!!!
आओ! उठो ! एकजुट हो
ReplyDeleteउखाड़ दो इनकी जड़ें
जो इस्लाम के नाम पर
जिहाद के नाम पर
मौत का तांडव करते हैं
अगर नहीं तो डाल दो हथियार
करो आर या पार ...
...........सटीक व सार्थक सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteआप और हम कह रहे हैं बात यही कबसे—
अब और इंतजार नहीं---
Very true...
ReplyDeleteबस हर बार हौसले काश के नीचे दबे चले जाते है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसहमत। आतंकवाद एक विकृति है जिसका खात्मा जरूरी है। इंसानियत को जिंदा रखने और अमन-चैन के लिए आतंकवाद को नेस्तनाबूत करना ही होगा।
ReplyDeleteएकजुट तो होना ही पड़ेगा ,जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा !
ReplyDeleteसार्थक आक्रोश भरी अभिव्यक्ति !
: पेशावर का काण्ड
होंसले और हिम्मत की जरूरत है ... जागने की जरूरत है बस ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteआतंक पर जीत हासिल करने के लिये पहले अपने ज़मीर को जगाना होगा ! अपने मन को दोगलेपन और लालच पर काबू पाना होगा ! अगर घर भेदियों की मदद ना मिले तो किसी आतंकी की हिम्मत नहीं हो सकती को देश में एक कदम भी आगे बढ़ा सके ! लेकिन हम अपने घर के शत्रुओं से ही नहीं निबट पाते बाहर से दुश्मनों की क्या कहें !
ReplyDeleteअगर नहीं तो डाल दो हथियार
ReplyDeleteकरो आर या पार ...
मत करो कोई कारवाही
स्वीकार करलो आतंक की गुलामी
अभी दुनिया को इंतज़ार है ! जब खुद पर बीतती है तभी इस आतंक के दंश का असर मालुम होता है जैसे आतंक का पोषित रहा पाकिस्तान आज अपने ही किये की सजा पा रहा है !!