Tuesday, December 2, 2014

मेरा दिल...ठहरा रहा


बदल गए हम कितने
बदला नहीं इक अहला एहसास
ताउम्र समंदर पास बैठा रहा
मगर बुझी न 'श्लोक' की प्यास 
रात सुकूं से सोने वालो के 
पलकों पर अब नींद नहीं बैठती
अरमानो की टोलियाँ
गलियो से मुँह टेड़ा करके जाती रही 
ख्वाब झटक देते रहे दामन मेरा 
जला के शहर भी मिटा नहीं अँधेरा  

दिन भर उड़ाते रहे हम
झूठी अफवाह जिंदगी नयी-नयी सी हैं
मगर पुरानी यादो के सलाखों में कैद रहे
खाली-खाली से हम  
तसल्लियाँ समेटे रहे मुकम्मल होने की
सुलगते रूह पर पानी के छीटे देते रहे 

वक़्त दरिया सा बहता रहा
कदमो ने मीलो का फासला तय कर लिया
आवारा हादसे मिलते-मिलाते रहे
मुकाम आते रहे......जाते रहे
जिंदगी का कारवाह आगे बढ़ता रहा
मगर  

मेरा दिल......
उनकी दहलीज़ पर ठहरा रहा !!

____________

© परी ऍम. 'श्लोक'
 

11 comments:

  1. bahut khubsurat ahsaas liye khubsurt rachna ..

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-12-2014) को "आज बस इतना ही…" चर्चा मंच 1816 पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. क्या बात क्या बात
    जबरदस्त

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. कल 04/दिसंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. बहुत ही जबरदस्त लिखा है ... क्या बात ...

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  7. अक्सर इसी तरह के भुलावे देकर खुद को और तमाम दुनिया को बहलाने की कोशिश में ही यह उम्र खत्म हो जाती है ! बहुत सुन्दर रचना !

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  8. Behad umdaaa. . Shabdo ka bhaavpurn aur sateek upyog. Too good..

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  9. बहुत सुन्दर रचना

    उम्र सारी यूँ हीं तमाम हुई
    कभी सुबह तो कभी शाम हुई
    बहुत सम्हाला वफ़ा का पैमाना
    न सकी मिला न ज ज़ाम हुई
    अज़ीज़ जौनपुरी

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  10. दिन भर उड़ाते रहे हम
    झूठी अफवाह जिंदगी नयी-नयी सी हैं
    मगर पुरानी यादो के सलाखों में कैद रहे
    खाली-खाली से हम
    तसल्लियाँ समेटे रहे मुकम्मल होने की
    सुलगते रूह पर पानी के छीटे देते रहे
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !

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