खुले
आम फिरने लगें हैं
राक्षस...
उनके सिर पे सींग नहीं होती
उनकी आवाज़ रावणी नहीं होती
महिषासुर की तरह
उनका घमंड नहीं झलकता
होते हैं ये चलते-फिरते
इंसानी भेष धरे आज़ाद हैवान
जो अपनी असलियत छिपाए फिरते हैं
मीठी-मीठी बातो के चिलमन में
वो दिखते और चमकते हैं
सोने की तरह...
किन्तु
कोयले की खान होते हैं
अंदर ही अंदर इनमें
उबलता हैं दरिंदगी का दरिया
छाया होता हैं दिमाग में
कुख्यात सोच का घना कोहरा
फलता-फूलता रहता है
हैवानियत का जंगल
क्योंकि देते हैं हम उन्हें
अपनी सहनशीलता की ज़मीन
लापरवाही की धूप
अपनी बेबसी की बारिश
गैरजिम्मेदारी का मौसम
डर की जलवायु
और तैयार हो जाती है
दरिंदगी की
ऐसी कंटीली..जहरीली फसल
जो दे जाती हैं
हमारी बहन-बेटियो को नासूर जख्म
कानून काली पट्टी बांधे
फिर इन्साफ करने चलता है
कहता है नहीं है रस्सी में बल
जेल में जल्लाद नहीं हैं
जो इसने किया फाँसी दे सकें
ये ऐसा अपराध नहीं हैं
और फिर सर उठा लेता है साहस
अपराधी के राहत की साँसों के भ्रूण से
अपराधियो की कतार तैयार हो जाती हैं
और हम रह जाते हैं
मोमबत्ती चौराहे पर जलाते हुए
टेलीविजन-अखबार-संसद में
बहस करते...और चीखते..चिल्लाते हुए
इंतज़ार करते हुए
कि अगला हादसा कब होगा ??
राक्षस...
उनके सिर पे सींग नहीं होती
उनकी आवाज़ रावणी नहीं होती
महिषासुर की तरह
उनका घमंड नहीं झलकता
होते हैं ये चलते-फिरते
इंसानी भेष धरे आज़ाद हैवान
जो अपनी असलियत छिपाए फिरते हैं
मीठी-मीठी बातो के चिलमन में
वो दिखते और चमकते हैं
सोने की तरह...
किन्तु
कोयले की खान होते हैं
अंदर ही अंदर इनमें
उबलता हैं दरिंदगी का दरिया
छाया होता हैं दिमाग में
कुख्यात सोच का घना कोहरा
फलता-फूलता रहता है
हैवानियत का जंगल
क्योंकि देते हैं हम उन्हें
अपनी सहनशीलता की ज़मीन
लापरवाही की धूप
अपनी बेबसी की बारिश
गैरजिम्मेदारी का मौसम
डर की जलवायु
और तैयार हो जाती है
दरिंदगी की
ऐसी कंटीली..जहरीली फसल
जो दे जाती हैं
हमारी बहन-बेटियो को नासूर जख्म
कानून काली पट्टी बांधे
फिर इन्साफ करने चलता है
कहता है नहीं है रस्सी में बल
जेल में जल्लाद नहीं हैं
जो इसने किया फाँसी दे सकें
ये ऐसा अपराध नहीं हैं
और फिर सर उठा लेता है साहस
अपराधी के राहत की साँसों के भ्रूण से
अपराधियो की कतार तैयार हो जाती हैं
और हम रह जाते हैं
मोमबत्ती चौराहे पर जलाते हुए
टेलीविजन-अखबार-संसद में
बहस करते...और चीखते..चिल्लाते हुए
इंतज़ार करते हुए
कि अगला हादसा कब होगा ??
Hadse to hote rahege. Jab tak log shikshit nahi hoge jab tak hum mahangai kee tarah badate rahege. Thok ke bhaav log hai aur thok ke bhaav paida kar rahe hai. Unme se aage chal kuch danav to banege hi.
ReplyDeleteThese shameful acts just don't seem to stop..its a sorry state for our society to be in..well written Pari.
ReplyDeleteयथार्थ दर्शाती दिल को छू लेनेवाली रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावात्मक रचना.इंसानों के वेश में हैवानों को पहचानने की जरूरत है.
ReplyDeleteआज के कटु यथार्थ को दर्शाती बहुत गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमहिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों का उचित चित्रण के लिए आपको धन्यवाद! आदरणीया परी जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
कटु यथार्थ को उकेरती अत्यंत मार्मिक रचना ! विडम्बना यही है कि कुछ भी नहीं बदलता और एक गुनाह के बाद ढेर सारी लंबी चौड़ी बहसों और मोमबत्तियां जलाने की कवायद कर लेने के साथ ही हम इस खुशफहमी में जीने लगते हैं कि अब सब कुछ ठीक हो गया है ! लेकिन कुछ भी नहीं बदलता है ! गुनाहगार और उनकी गंदी मानसिकता उसी तरह फलती फूलती रहती है !
ReplyDeleteवाह - वाह..... बहुत खूब !!!!
ReplyDeleteऔर हम रह जाते हैं
ReplyDeleteमोमबत्ती चौराहे पर जलाते हुए
टेलीविजन-अखबार-संसद में
बहस करते...और चीखते..चिल्लाते हुए
इंतज़ार करते हुए
कि अगला हादसा कब होगा ??
आज के कटु यथार्थ को दर्शाती बहुत गहन अभिव्यक्ति..
कल 08 /मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
क्योंकि देते हैं हम उन्हें
ReplyDeleteअपनी सहनशीलता की ज़मीन
लापरवाही की धूप
अपनी बेबसी की बारिश
गैरजिम्मेदारी का मौसम
डर की जलवायु
और तैयार हो जाती है
दरिंदगी की
ऐसी कंटीली..जहरीली फसल
जो दे जाती हैं
हमारी बहन-बेटियो को नासूर जख्म
अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .