समझ नहीं आता
कि ये अजनबी सा
सुरूर आखिर रवां क्यों हैं ?
ये तुमसे
मुलाकातों का असर है
या फिर कुछ और
क्यूं तुम जाते नहीं इक पल भी
मेरे ख़्याल से दूर कहीं
क्या है ये असर
दरासल इसे कहते क्या हैं ?
कभी सोचती हूँ
कि तुम सामने आओ
और तुम्हे बता दूँ सब कुछ
मगर फिर
जब तुम सामने आते हो तो
ख़ास होने के
गुमां में आ जाती हूँ
और आरज़ू करती हूँ
कि तुम कहो हर वो बात
अपनी जुबान से
जो मेरे मन में तूफां से हैं
अज़ब पागलपन है न ??
इस यकीन का सबूत भी नही
कि ये हलचल
दोनों ओर इक जैसा
हैं भी या नहीं
मगर सुनना चाहती हूँ फिर भी
तुम्हारे ज़स्बातो के लहज़े में
हर वो बात जो बिल्कुल
वैसा हो जैसा कि मैं
तुम्हारे खातिर ....
अक्सर महसूस करती हूँ मुझमे !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
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