Thursday, April 3, 2014

"फिलहाल"

अफ़सोस है
मगर
क्या साँसे छोड़ दूँ ?
या फिर
क्या कैद करदूं ?
बाकी सारी खुशियां तयखाने में...

छोड़ो जाने भी दो अब

टूट जाने दो सपना
अगर
कोई टूटा भी है तो
हुनर अभी भी पास है
 
फिलहाल तो बस
ये जिंदगी ज़रूरी हैं
मैं फिर कोई नया
सपना सज़ा लूंगी

क्यूंकि
नींदे भी मेरी हैं,
आँखे भी मेरी हैं
और अभी
ये राते भी मेरी हैं !!


रचनाकार : परी ऍम "श्लोक"

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