Friday, April 4, 2014

"रोटी"

खुले आस्मां के नीचे हैं
मेरा घर..
छत ढही हुई है..
दीवार चिटकी है..
चूल्हा बुझा है..
बच्चे भूखे हैं..
आधे ढके-आधे नंगे हैं..
बीवी का यौवन..
फटे चिथड़ो में लिपटा..
जो मांगे हुए थे..
आज बरसात है..
लेकिन अच्छी न लगी..
मैं भी ठिठुरा ठण्ड से ..
मेरे कोमल बच्चे भी..
कपकपाने लगे..
मुझे पानी कि ज़रूरत नही थी..
आज तो केवल..
पेट में आग थी..
सिर्फ और सिर्फ भूख कि..
जिसे संतुष्ट करती रोटी..
मैं मंदिर के लिए निकला..
इस आस में कि ..
कुछ मिल जाए ..
पेट शांति का साधन..
मगर ..
किसी ने फेकी वोही रोटी ..
चौराहे पर कुत्तो के लिए ..
मैं झपटा ..
क्यूंकि आज मैं कुत्ता था ..
और फेकने वाले.
मेरी नज़र में इंसान ..!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

2 comments:

  1. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !

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