बड़े ताजुब में था इस बात कि हैरत रही
मैं तेरे यकीन में था और तू बेगैरत रही
तमाशा करते हैं लोग अब मास्क पहन के
रिश्तो से ज्यादा जुबा पे नाम शोहरत रही
मैं चलता हूँ फिर अपने आस-पास देख लेता हूँ
अबतो मेरे साये पे भी मेरी शक्की नीयत रही
अपने हाथो में मैंने तलवार उठा के रक्खा है
बुरे अकलमंदों से अक्सर अपनी बगावत रही
मैंने पाला नहीं जिंदगी में कुकुर का कारवाह
था ख्वाब-ए-शेर जिसकी हर सु हमें चाहत रही
ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक
मैं तेरे यकीन में था और तू बेगैरत रही
तमाशा करते हैं लोग अब मास्क पहन के
रिश्तो से ज्यादा जुबा पे नाम शोहरत रही
मैं चलता हूँ फिर अपने आस-पास देख लेता हूँ
अबतो मेरे साये पे भी मेरी शक्की नीयत रही
अपने हाथो में मैंने तलवार उठा के रक्खा है
बुरे अकलमंदों से अक्सर अपनी बगावत रही
मैंने पाला नहीं जिंदगी में कुकुर का कारवाह
था ख्वाब-ए-शेर जिसकी हर सु हमें चाहत रही
ग़ज़लकार : परी ऍम श्लोक
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