Thursday, April 17, 2014

!! वो वक़्त भी आएगा जब खुदा रो रहा होगा !!

सोचता हूँ की यही पे आशियाँ बना लू
आगे गया तो और जाने क्या होगा ?

इतना काफी नहीं जो मिला इनाम हमें
अब इससे ज्यादा भी और क्या बुरा होगा ?

कर दी है धरती लाल आसमां काला
इंसान किसकदर और अब हैवा होगा ?

आज कल अपने साये से डर जाती हूँ
इसके हाथो में भी कोई खंज़र छिपा होगा ?

न मैं कह पाउँगा न तुम सुन पाओगे
एहसास इक दिन ऐसा बेजुबान होगा ?

प्यास होगी उफान पे हर इक जर्रे में
मगर सूखा हुआ हर झील और दरिया होगा  

बदला हुआ चेहरा देख कर कायनात का
वो वक़्त भी आएगा जब खुदा रो रहा होगा


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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