वक़्त ने मुझे
उस कमरे के
भीतर लाकर खड़ा कर दिया है
जिसकी ज़मीन पहले ही
शबनम के पारदर्शी
लहरो ने नम कर दी है
जिसकी दीवार
सिसकियो ने
कुछ ऐसे धो दी हैं
कि उसपे चढ़े
रंगीन परत कि पपड़ी
हाथ लगाने तक से
गिर रही हैं
जहाँ पर आँखों के ख्वाब
दोनों ही पहर में
काज़ल से ज्यादा काले
और राख से ज्यादा
भुरभुरे हो जाते हैं
जहाँ बिस्तर के
नसीब में करवटे
और नीद के दामन में
बेचैनियों का तोहफा है
जिसके झरोखे से
हवा भी उलझन को
अपने पाँव में बाँध के आती है
इस कमरे कि तन्हाई
मेरी मुस्कराहट पर
पूरी तरह से
पूर्ण विराम लगाने पर भी
कभी नही हिचकिचाती
इक अज़ब सन्नाटा है
जितना मेरे अंदर है
उससे भी ज्यादा
इस कमरे में और बाहर
जो जब कभी चीखती है तो
दर्द कि सारी चिंगारी
मन के सूखे पत्तो पर
उड़ेल देती है
और उबाल के रख देती है
हर नरम संवेदना कि लहर !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
उस कमरे के
भीतर लाकर खड़ा कर दिया है
जिसकी ज़मीन पहले ही
शबनम के पारदर्शी
लहरो ने नम कर दी है
जिसकी दीवार
सिसकियो ने
कुछ ऐसे धो दी हैं
कि उसपे चढ़े
रंगीन परत कि पपड़ी
हाथ लगाने तक से
गिर रही हैं
जहाँ पर आँखों के ख्वाब
दोनों ही पहर में
काज़ल से ज्यादा काले
और राख से ज्यादा
भुरभुरे हो जाते हैं
जहाँ बिस्तर के
नसीब में करवटे
और नीद के दामन में
बेचैनियों का तोहफा है
जिसके झरोखे से
हवा भी उलझन को
अपने पाँव में बाँध के आती है
इस कमरे कि तन्हाई
मेरी मुस्कराहट पर
पूरी तरह से
पूर्ण विराम लगाने पर भी
कभी नही हिचकिचाती
इक अज़ब सन्नाटा है
जितना मेरे अंदर है
उससे भी ज्यादा
इस कमरे में और बाहर
जो जब कभी चीखती है तो
दर्द कि सारी चिंगारी
मन के सूखे पत्तो पर
उड़ेल देती है
और उबाल के रख देती है
हर नरम संवेदना कि लहर !!
रचनाकार : परी ऍम श्लोक
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