नजाने क्यूँ तुम हमसे खफा-खफा से रहे
मेरे होकर भी मुझसे जुदा से रहे
तुमने तो कह दिया कि बहुत मुश्किल है
हमारे रास्ते भी कब मगर आसां से रहे
हसरते तो इक पल में श्याह हो गई
ख्वाब हकीकत की वादियों में धुँआ-धुँआ से रहे
जहाँ भी देखा तुम ही नज़र आये मुझे
हज़ार चेहरों में तुम इक वो चेहरा से रहे
जुस्तजू ने तेरी रवानी रखी है सांस में
हम जिन्दा भी यहाँ बस तेरी वजह से रहे
अपने साये को भी पास आने न दिया
भीड़ माकूल थी हम मगर तनहा से रहे
ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
मेरे होकर भी मुझसे जुदा से रहे
तुमने तो कह दिया कि बहुत मुश्किल है
हमारे रास्ते भी कब मगर आसां से रहे
हसरते तो इक पल में श्याह हो गई
ख्वाब हकीकत की वादियों में धुँआ-धुँआ से रहे
जहाँ भी देखा तुम ही नज़र आये मुझे
हज़ार चेहरों में तुम इक वो चेहरा से रहे
जुस्तजू ने तेरी रवानी रखी है सांस में
हम जिन्दा भी यहाँ बस तेरी वजह से रहे
अपने साये को भी पास आने न दिया
भीड़ माकूल थी हम मगर तनहा से रहे
ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
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