Thursday, April 3, 2014

"किसके लिए"

किसके लिए
ये जेहद है
कोई धुन नही फिर
ये दबिश तो है
कंक्रीटों के वज़न के तले
हर तरफ पानी खारा
मैं प्यासा चकोर
बूँद गिरता नहीं
मैं हूँ कि मरता नहीं
आग कि आशा है
और धुंआ उठता है
छांव में ही चलूँ
मगर करूँ तो क्या
असर इससे भी ये
कि पाँव जलता है
कल ये पेड़ तो सबका था
इसको किसने हिस्सो में काटा
कि अब बाज़ारो में
हर टुकड़ा बिकता है
कुछ कह गया ये कौन ??
जो हम समझ के भी न समझे
तबसे अंदर ही अंदर
इक इंसान घुटता है


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!