Wednesday, April 30, 2014

बाबा आज उदास क्यूँ??

बाबा आज
तुम यूँ उदास क्यूँ?
तुम्हारे पेशानी पर
आज ये बेवजह का
खारा नीर उमड़ा क्यूँ है

माँ तुम गुमसुम
क्या सोचे जा रही हो
आँखों की चमक में लाली क्यूँ?
क्या विचार विमर्श करती रहती हो
मेरे विषय बाबा के साथ ?

बड़ी दीदी की कथनी सत्य तो नही
की अब मेरे विवाह की चिंता
दीमक की तरह
भीतर ही भीतर खाये जा रही है
आप ही तो कहते हो न
ये जगत का नियम है
बेटियां परायी होती हैं
मुझे भी बुरा लगता हैं
की ये कैसा नियम है जो
अपने ही जननी से दूर करता है
लेकिन फिर सोचती हूँ
बेटियो के माता-पिता तो
दुनिया के सबसे अमीर इंसान होते हैं
कितना बड़ा दिल होता है उनका
जो अपने अनमोल रतन को
भेट कर देते हैं किसी और को
पुरे आदर-सत्कार के साथ

बाबा मुझे पूरा विश्वास है
आपने मुझे
जिस सोच और संस्कर की
नीव का मालिक बनाया है
मैं उसपर नए जीवन के खुशियो का
महल बनाने में कामयाब रहूंगी

मैंने आज तक मेरी बेटी होने का दर्द
आपमें महसूस नहीं किया
फिर आज
उलझनों कि बदरियां
ये सोच का सुनामी
ये व्यर्थ कि चिंता क्यूँ ???

रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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