Wednesday, September 10, 2014

"आइना हूँ टूटा सा"

जैसे मैं कोई
आइना हूँ टूटा सा
चुनकर जोड़ती हूँ
मगर मिलता नहीं मुझे
मुकम्मल वज़ूद अपना
शायद
कोई अहम हिस्सा
बहा ले गया है बयार

और
अब ये सूरत है कि ...

कुछ दारारो से पड़े हुए दाग हैं
कुछ खरोच हैं वक़्त के नाखूनों के 
कुछ हिस्सा लापता है

किसी पत्थर का ये एहसान है कि ....

ये आइना तो बस अब
टुकड़ो में जिन्दा है !!

________परी ऍम 'श्लोक'

5 comments:

  1. सुन्दर एहसास

    ये आइना तो बस अब
    टुकड़ो में जिन्दा है !!

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  2. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  3. कल 12/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. उम्दा...बहुत ही बढ़िया

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