Friday, April 18, 2014

!! मैंने कब कहा की तुम मेरा साथ दो !!

मैंने कब कहा की तुम मेरा साथ दो
जिंदगी के पास मेरे ऐसी मज़बूरी तो नहीं

धूल ज़मी है अभी तो तन पे
होश जिन्दा है मैं अभी मरी तो नहीं

किसको सलामी दूँ मैं खुदा समझ
बेदाग़ यहाँ कोई भी आदमी तो नहीं

वो मुझे पूरा करने का दम भरता है
कहीं मैं सच में उसके बिना अधूरी तो नहीं

इसकी गोद में भी न सो सकूं सकून से
इतनी संगदिल ये मेरी सर-ज़मी तो नहीं

कोई पढ़ के फाड़ने की हिम्मत जुटा सके
मेरी दास्तान इतनी भी बुरी तो नहीं

मुझे आदत है जीने की पूरे गुरूर से
श्लोक की गैरत कहीं से अधमरी तो नहीं 

जो गुजर गया वो बुरा था मैं सोचू क्यूँ
हर अदा को अंजाम मिले ये भी ज़रूरी तो नहीं

(c) परी ऍम 'श्लोक'

1 comment:

  1. कोई पढ़ के फाड़ने की हिम्मत जुटा सके
    मेरी दास्तान इतनी भी बुरी तो नहीं ............ laajwaab lekhani......... badhayi

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