तुम्हारे
फलसफे
जेहन
के महफूज कोने में
बड़ी
कद्र के साथ रखा है
लेकिन
होंठो
तक इनकी वापसी
हार
कि लकीर खींच देती हैं
ताकती
मुस्कुराती आँखों से
टप-टपा
के गिर जाती हैं
कुछ
नमकीन बूंदे.....
दर्द
कि प्यास
जब
सारी हदे पार कर सुखा देती है
उम्मीद
के गुलाबी होंठ
तब
समझ में नहीं आता कि
कहूं
तो क्या और किससे ?
ऐसा
कुछ भी तो नहीं
जो
मरे हुए रिश्ते में जिंदादिली ला दें
और
चुप रहूँ तो कैसे ?
इंतेहा
हो जाती है बर्दाश्त कि
फिर
कुछ अच्छा नहीं लगता
कभी-कभी
सोचती हूँ कि
मिटा
दूँ हर वो एहसास
जिसका
आग़ाज़ तुम हो
और
अंजाम भी तुम ही हो
मगर
जानती हूँ मैं
कि
कुछ दास्तान
जहन
के पन्ने पर तहरीर होते हैं
दिल
कि पुतलियो के तस्वीर होते हैं
जो
किसी भी एवज़ में
खत्म
नहीं होते
बेशक
इन्हे
मिटाते मिटाते
जिंदगी
कि रबड़ तक घिस जाती है !!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
No comments:
Post a Comment
मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!