क्यूँ इसकदर ये हालातो कि आंधी चलती है
पुरुष कि जननी है औरत क्यूँ फिर जलती है
गन्दी मानसिकता के जोंक ने खून पी लिया
सहम के औरत अब भीड़ में भी चलती है
इसकदर हैवान हुआ फिरता है आज आदमी
कि औरत अब किसी भी साये से डरती है
हादसे कि वजह कुछ भी कैसे भी हो मगर
उंगली उठती है यूँ कि सब मेरी ही गलती है
लव्जों में इतनी बदजुबानी ने पनाह पायी है
कि हर कूचे में मेरे अस्तित्व पे फब्तियां उछलती हैं
लिबास को वजह बताने वालो ज़रा बताओ मुझे
वो शिकार क्यूँ होती है जो दुपट्टा ओढ़ के चलती है
कहो बदले अगर बदलना है तो वहशी नियत अपनी
जो हर एक लम्हा औरत के मान को छलती है
गर रोंदना औरत को तुम्हारा परुषार्थ साबित करता है
तो सुनो ऐसे पुरुषार्थ पर 'श्लोक' थूकती चलती है
Written By : परी ऍम श्लोक
पुरुष कि जननी है औरत क्यूँ फिर जलती है
गन्दी मानसिकता के जोंक ने खून पी लिया
सहम के औरत अब भीड़ में भी चलती है
इसकदर हैवान हुआ फिरता है आज आदमी
कि औरत अब किसी भी साये से डरती है
हादसे कि वजह कुछ भी कैसे भी हो मगर
उंगली उठती है यूँ कि सब मेरी ही गलती है
लव्जों में इतनी बदजुबानी ने पनाह पायी है
कि हर कूचे में मेरे अस्तित्व पे फब्तियां उछलती हैं
लिबास को वजह बताने वालो ज़रा बताओ मुझे
वो शिकार क्यूँ होती है जो दुपट्टा ओढ़ के चलती है
कहो बदले अगर बदलना है तो वहशी नियत अपनी
जो हर एक लम्हा औरत के मान को छलती है
गर रोंदना औरत को तुम्हारा परुषार्थ साबित करता है
तो सुनो ऐसे पुरुषार्थ पर 'श्लोक' थूकती चलती है
Written By : परी ऍम श्लोक
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