Saturday, March 22, 2014

खामोशियाँ कुछ तो कहती हैं???


बूढ़ी काकी के घर से
आवाज़ नहीं आ रही सुमन कि ..
कहाँ गयी होगी??
खेलने भी नहीं आयी
काकी कि पनीली पुतलियाँ
कुछ तो कहती है?
वो चुप है पूछने पर कुछ नहीं बोलती..
पर खामोशियाँ कुछ तो कहती हैं???
भीतर से सिसक सुनायी दी,
छोटू झट से भागा अंदर
सिसक बंद हो गयी
किसकी आवाज़ होगी ये??
इतनी मद्धम सी...
मैं भी जिद्दी बयाले से देखने लगी
सुमन अंदर थी चिथड़े कपड़ो में
चोट के निशान चहरे पर, शरीर पर....
मैं सेध लगा अंदर गयी.
क्या हुआ??
वो कुछ न बोली
ना आह! ना ऊह!,न हाय!
लिपटी सुमन और टपके आंसू सिर्फ..
पर .....
खामोशियाँ कुछ तो कहती हैं??
खामोशियाँ भी चीख पड़ी...
मुझे छूती उसकी धड़कनो ने
समझ तक सुराख़ कर दिया
चोटो ने मन में मवाद..
अब मुश्किल नहीं था
अंदाज़ा लगा पाना कि

वो शिकार हुई थी अस्मिता हनन कि!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
Dated : 24/12/2013

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!