Saturday, March 29, 2014

जाने क्यूँ ?

जाने क्यूँ ?
इस राह से
इसकदर लगाव है मुझे
जिसकी मंजिल
न कभी थी
और
न कभी होंगी
हुह.........
मंज़िले कैसी होती हैं
ये मुआमला अफवाह हो गया है
इस सफ़र को तय करते ही
भूल चुकी हूँ मैं
बेवजह भटकाव कि बातो को
तवज्जु देना तक
यहाँ के हर दिलकश मंज़र में
रम सी गयी हूँ
और शायद !
ये ज़रूरी भी है
इस सन्दर्भ के लिए
और इस सोच को
सदैव जीवित रखने के लिए
जो भी करो शिद्दत से करो
फिर चाहे वो जिंदगी जीने का सफ़र हो 
या प्रेम का जन्मा हुआ
कोई अनकहा सा भाव !! 


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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