Sunday, March 30, 2014

खून पीती ज़मीन

रिश्तो का
कब हास हो गया ?
पता भी न चला ....
दो बिस्सा ज़मीन ने
मांग ली अपनेपन कि बलि
दे दिया गया उसे
बाप का सम्मान
माँ का दुलार
और
धुत्कार कर छोड़ दिया गया
बुजुर्ग माँ-बाप को...
मिला दिया गया
उनके सपनो को मिटटी में..
उनके अभिमान को
जला कर राख कर दिया गया.. 
जिनके परवरिश ने  
ढेमलाते हुए ढेले से
एक चट्टान बनाया हमको
उन्हें भी आभास न हुआ
कि उस बेटे का हृदय
कब पत्थर हो गया ?
जिन बच्चो को हर दिन
आपसी प्यार और एकता का
पाठ पढ़ाया गया
कब वो भाई-भाई ज़मीन के लिए
एक दूसरे कि
जान लेने पे अमादा हो गए
कैसे मीठी बोली
गाली ग्लोझ का रूप ले बैठी ?
आखिर कैसे ये रिश्ते
हिंसक हो गये ?
बेबस माँ-बाप ने तो
ये कल्पना भी नही कि थी
कि उम्र के एक ऐसे पड़ाव पे
जब एक-दूसरे कि
सबसे ज्यादा ज़रूरत होगी उन्हें
तब उस वक़्त उन्हें
ऐसे टुकड़ो में बाँट दिया जाएगा
उनदोनो का पेट भरना
इतना दूभर हो जाएगा
जिन्होंने अपना तन पेट काट कर भी 
हमारा पेट हमेशा भरा रखा
इसकदर जीते जी मौत को
उनके सामने
ऐसे पेश कर दिया  जाएगा 
सच !
सोचती मैं भी हूँ
कभी कभी
इक इंसान क्या इस कदर
भूखा और लालची भी हो सकता है
जो बिना शिकन के
विश्वास कि खाल नोच कर
खाद बना ज़मीन को उपजाऊ बना लेता है
सींचता चला जाता है
कभी छल तो कभी बल से
चंद टुकड़े ज़मीन को
अपने सबसे करीब रिश्तो के खून से !!!

रचनाकार : परी ऍम श्लोक

((ये रचना उन कट्टर लोगो के ऊपर थूकते हुए जो जायदाद के नाम पे करते हैं भावनाओ से खिलवाड़, अपने जन्मदाता को त्रिस्क़ृत करते हैं और साथ ही विनती भी करती हूँ बुजुर्ग को बच्चो कि तरह से परवरिश दो इस वक़्त उन्हें सबसे ज्यादा जरुरत होती है अपनों कि ))

3 comments:

  1. रिश्तों के ताने बाने को साथ गंभीर उलझन की सुन्दर नक्कासी

    कीमत न रही अब रिश्तों की
    रिश्ते टुकड़ों में बटते हैं
    तोल माप के तराजू पर
    मोल भाव कर बिकते है
    अज़ीज़ जौनपुरी

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  2. वाह ! बहुत सुंदरा चित्र उकेरा है

    जीवन के इस महसमर में
    रिश्ते घमासान हो गए
    जली प्रीति की ऐसी डोरी
    रिश्ते अब शमशान हो गये
    अज़ीज़ जौनपुरी

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