Thursday, March 6, 2014

"तुम हो या ख्याल मेरा"

तुम हो या
फिर
कोई खूबसूरत ख्याल मेरा

सोचती हूँ आजकल
बेरोक, बेटोक
हर लम्हा, हर पल
बस तुम्हे..... सिर्फ तुम्हे....
हाँ ! तुम्हे

मगर क्या ?

ये ख्याल तुम्हारे साथ भी
ऐसा कोई खेल खेलते हैं
जिसमे
सिर्फ मैं और मैं, बस मैं हूँ
क्या तुम्हे भी आभास है
हलचल मचाते आलम का
ऐसे छमछमाते जस्बो के बादल का
जिसमे बूँद एक भी न हो
बस याद बरसे..और बेताब करदे ...

मैं हैरां हूँ ज़रा सा परेशां भी
जहाँ कोई नहीं होता
वहाँ बस तुम होते हो
और
जहाँ सब होते हैं
वहाँ भी तुम रहते हो

क्या हो तुम ?
जो हर जगह बसर करते हो
या फिर मेरी आँखों में ही हो तुम
दूर से पास तक
हर ज़र्रे, हर कोने में,
जमीन में, फ़ज़ा में
तुम्हारे चेहरे के सिवा कुछ नहीं
सिर्फ महसूस होते हो तो तुम
सपनो कि लम्बी अनजान गलियो में
जिसका पता मुझे मालूम नही..

बेशक !
या तो फिर
ये तमाम मंज़र तुम्हारे गुलाम है
या फिर
तुमने मेरे जहन-ओ-दिमाक पर
अपना कब्ज़ा कर लिया है !!


रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'

1 comment:


  1. क्या हो तुम ?
    जो हर जगह बसर करते हो
    या फिर मेरी आँखों में ही हो तुम
    दूर से पास तक
    हर ज़र्रे, हर कोने में,
    जमीन में, फ़ज़ा में
    तुम्हारे चेहरे के सिवा कुछ नहीं
    सिर्फ महसूस होते हो तो तुम
    सपनो कि लम्बी अनजान गलियो में
    जिसका पता मुझे मालूम नही..
    बहुत खूबसूरत शब्द

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