Saturday, March 15, 2014

"जब सपने बदल गए"

मुझमे जीतने का जस्बा था
हालातो को मात देने का शौक
जीत मेरा दामन थामे हुए थी
न उसने छोड़ा
न मैंने मात खाई
हर बार मेरे हौसले खड़े होकर
मुझे सलाम करते करते थक जाते
मेरे सपने मैंने टूटने नहीं दिए
शायद !!!!
या फिर यूँ कहो कि.. 
वो सपने ही नहीं सजाये
जो टूटे तो मैं टूट जाऊं
शिद्दत से कुछ हुआ ही नहीं
बस इक आदत थी जो चले जा रही थी
औऱ मैं उसको रास्ता देती रही
मगर जाने कब ??
मेरे सपने बदल गए
सोच के चहरे बदल गए
जिंदगी के मायने बदल गए 
रंग ही रंग बिखर गए दुनिया में...
मैंने पहली बार अज़ीब सी शिकस्त खायी
जिसमे न ही हार जाने का
कोई मलाल था मुझे
न ही हारा हुआ सा कुछ महसूस  हुआ
मुझे जाने क्यूँ इतना आराम था
इत्तेफाक कि शिकार थी मैं
लेकिन कुछ ऐसा महसूस हुआ 
जैसे इस हार ने मुझे जिता दिया
अगर मैं ये कहूँ तो झूठ न होगा
वो जो मेरी जीत भी
आज तक मुझे
कभी महसूस नहीं करा पायी
इस बार मैंने कुछ ही क्षण में
हार कर भी वो हासिल कर लिया था
लेकिन इस बार मैंने
सबसे खूबसूरत हिस्सा हार दिया था
अपने अस्तित्व का...
जानते हो क्या ?
वो था मेरा बेहद मासूम दिल
जिसे वो लेकर चला गया
बिना मेरी मर्जी को जाने-बूझे
औऱ मैं उसे चाहकर भी रोक नहीं पायी !!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

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