ये लोग इसकदर खामोश क्यूँ है
अपने ही मसलो में मदहोश क्यूँ है
आँख मूँद के गुज़र रहे हैं राहो से
ज़मीर इनके कांधो पर बोझ क्यूँ है
हलचल है जिस्म में जहन में मुकाम
ये जिंदगी जिन्दा है तो बेहोश क्यूँ है
इंसानियत कि मशाल क्यूँ बुझी हुई है
औरत सबकी दीद में बस गोश क्यूँ है
ये वक्त का वादा है वज़ूद महफूज़ करेगा
फिर यहाँ लुटती आबरू हर रोज़ क्यूँ है
अपनी ही लगायी आग में झुलस रहे हैं
फिर इस हाल पर ये अफ़सोस क्यूँ हैं
मैं शहर हूँ चीखे सुनता हूँ बोलता हूँ
कस्बो के सीने में मगर ये खौफ क्यूँ है
Written By:-
परी ऍम श्लोक
05/03/2014..12:58 PM
अपने ही मसलो में मदहोश क्यूँ है
आँख मूँद के गुज़र रहे हैं राहो से
ज़मीर इनके कांधो पर बोझ क्यूँ है
हलचल है जिस्म में जहन में मुकाम
ये जिंदगी जिन्दा है तो बेहोश क्यूँ है
इंसानियत कि मशाल क्यूँ बुझी हुई है
औरत सबकी दीद में बस गोश क्यूँ है
ये वक्त का वादा है वज़ूद महफूज़ करेगा
फिर यहाँ लुटती आबरू हर रोज़ क्यूँ है
अपनी ही लगायी आग में झुलस रहे हैं
फिर इस हाल पर ये अफ़सोस क्यूँ हैं
मैं शहर हूँ चीखे सुनता हूँ बोलता हूँ
कस्बो के सीने में मगर ये खौफ क्यूँ है
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परी ऍम श्लोक
05/03/2014..12:58 PM
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