Tuesday, March 18, 2014

!! बचपन खो गया है उम्र के गलियारो में !!


ज़रा सी बात पर फूट कर देर तलक रोती हूँ
बचपन खो गया है उम्र के गलियारो में

चोट लगती है तो दमन से उसे ढक लेती हूँ
डर लगता है ज़माने के बेतुके सवालो से
कभी नापा करती थी चाहतो को टूटी चूड़ी से
आज उसे तलाशती हूँ लव्ज़ के हवालो में

जस्बात हर घड़ी मुझे कमज़ोर करते रहते हैं
उलझ गयी हूँ तबियत के रेशमी जालो में

वो दिन था कि सोते थे रातो पे हुकूमत करके
अब तो नींद भी टहलते हैं किसी के ख्यालो में


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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