Tuesday, March 25, 2014

"सुख कि ज़ायज़ हकदार"

इसी जुगाड़ में हूँ कि
कहीं से और कैसे भी लाकर
बहारे तुम्हारे जीवन को
तोहफे में दे दूँ
ताकि तुम सहेज लो
उसे प्यार से
और कोई भी पतझड़
तुम्हारे जीवन से
इसे चाहकर भी छीन न सके
तुम्हारे आस-पास
कई सूरज जला के रख दूं ताकि 
तकलीफो के काले साये तुम्हे
रोशनदानी के सलाखो के
बीच से झांक न सके..
तुम्हारे लबो पे
मुस्कराहट लाकर झाड़ दूँ
ताकि हसी तुममे जब भी
खुदको देखे तो बहुत नाज़ करे
और फिर कभी तुम्हारा साथ
छोड़ने कि भूल न करे
तुम्हारे चहरे पर
सिन्दूर  कि लालियाँ बिखेर दूँ 
और आँखों में चांदनी कि चमक 
तुम्हारे दामन में
तमाम गर्दूँ के सितारे
बेहिसाब भर दूँ
दुःख के सारे गर्द एक फूक से उड़ा दूँ
बुझे और बंज़र मन में
फूलो कि बगिया बो दूँ
हर मात रगड़ के धो डालूं
शय से रच दूँ
तुम्हारा हर रास्ता हर सफ़र
और तुम्हे सौप दूँ
सुखो कि विरासत
जिसकी तुम ज़ायज़ हकदार हो !!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक
( Dedicated to maah sister )

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